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---निमित्तशास्त्रम ----
निमित्तशास्त्रमा
वर्षा विषयक उत्पात प्रकरण गामेवाणयरेवा जइरिसइ बहुविहाय वरिसाइ।
वसमंसपूयवरिसंतिल्लं सप्पे चणुहिरंवा॥६५|| अर्थ :
किसी ग्राम अथवा नगर में वर्षा सम्बन्धी उत्पात होते हैं, जैसे। कि - रक्त की वर्षा, मांस की वर्षा अथवा तेल की वर्षा ।
आगे इनके फलों को कहते हैं। भावार्थ :
इस गाथा से आगे वर्षा के उत्पातों को बताने की प्रतिज्ञा की है।
वर्षा अनेक प्रकार की होती हैं- रक्तवर्षा, मांसवर्षा, धौवर्षा । अथवा तेलवर्षा । इनका फल आगामी गाथाओं में बतायेंगे ।
मारी हाट्ठी घोरा जत्थेहे एहाति वरिस उप्पाया। तसेवज्जिजहाकालपमाणंवियाणित्ता॥६६॥
VERNashirtlethari
अर्थ :
उपर्युक्त वर्षायें जहाँ पर होती हैं, वहाँ पर घोर मारी की बिमारी, होती है। उस देश का त्याग करो। आगे उसकी अवधि बतलाते हैं। भावार्थ :
कुवर्षा जहाँ पर होती है वहाँ अवश्यमेव भारी रोग फैलता है। उसके देश का त्याग कल्याणेच्छु भव्य को करना चाहिये ।
कुवर्षा का फल कितने समय में मिलता है ? इस प्रश्न का उत्तर आचार्य भगवन्त स्वयं ही अगली गाथाओं में देंगे।
मासेऊमासेणंदोमासेसोणियस्सणायव्यो।
विट्ठाएछम्मासं विय तिल्ले सत्तरत्तेण॥६७|| अर्थ :