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(निमिन शास्त्रम)
होईणयरविणासो परचक्काऊण संदेहो ॥५२॥
अर्थ :
यदि बिना बैलों का हल अपने आप खड़ा होकर नाचने लगे तो ऐसा जानना चाहिये कि परचक्र के द्वारा इस गाँव का नाश होगा |
णाणा दुमउयणयिदि णायंतो जइ पडेदि भूमीए । तो अवयव प्रारिभयंता संदेहो ॥५३॥
अर्थ :
यदि कोई वृक्ष बिना हवा ही चले अथवा बिना किसी कारण गिर , पड़े तो उस गाँव में भारी रोग अवश्य फैलेगा। इसमें किसीप्रकार का सन्देह
नहीं है।
णयरस्स रच्छमज्झे साणा रोवंति णुद्धतुडाणं । होइ णयरविणासो परचक्काऊण संदेहो ॥५४॥
२२
अर्थ :
शहर के मध्य में कुत्ते ऊँचा मुँह करके रोवे तो परचक्र से नगर का नाश होगा। इसमें कोई सन्देह नहीं है ।
णम्मि यदि तं कंकालज्जइ विदीसए जत्थ । राइविणासो होही परचक्काऊ ण संदेहो ॥५५॥
अर्थ :
जिस नगर में पुरुष कंकाल के समान (हड्डियों के ढांचे के समान) ज्ञात होने लगे तो परचक्र से वहाँ के राजा का नाश होगा। इसमें कोई . सन्देह नहीं है।
आमिगपक्खी गामे णयरेय जत्थ दीसंति ।
होही णयरविणासो परचक्काऊ ण संदेहो ॥५६॥
अर्थ :