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निमितशास्त्रम्
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(चन्द्र प्रकरण चंदो सरूवसरिसो ये यारिसणू विऊण हयलम्मि। जइ दीसइ तस्स फलं भण्णम्मि इत्तो णिसामेहा॥३३॥ अर्थ :
अब चन्द्र का रूप देखकर शुभाशुभ फल को कहने का ज्ञान बतलाते हैं। भावार्थ :
अबतक की गाथाओं में सूर्य के दर्शन से होने वाले निमित्तों का कधन किया जा रहा था। अब आचार्य भगवन्त चन्द्रदर्शन से ज्ञात होने वाले निमित्तों का कथन कर रहे हैं।
णायामंगलसरिसो दक्किगजर सम गऊ चंदो। 3 जुगदंडधणुसरिसा समसरित मण्डलो णोदू ॥३४॥ अर्थ :
उदित होता हुआ प्रतिपदा या द्वितीया का बालचन्द्रमा । धनुषाकार दक्षिण-उत्तर में समाज हो तो सर्वत्र सुभिक्ष होगा ।
अबलं वियसी सधरो रूवे यसछलक्षणो चंदो। *णावाइ कुणइ वरिसं सुभिक्ख देइ हलसरिसो|३५|| अर्थ :
शुभ, स्वच्छ और समान चन्द्रमा बहुत पानी बरसाता है तथा हल के समान दिखने वाला चन्द्रमा सुभिक्ष की सूचना देता है। * आरोगं दक्खिणवो जुगसंपत्ति जुगस्सयाणो य।
दंडम्मि दंडसरिसो धणुसरिसो ससहरो जुस्स ॥३६|| अर्थ :