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________________ णमोकार ५.५ ॐ ह्रीं पद्मगर्भाय नमः ||७२२|| गर्भावस्था में ही लक्ष्मी प्राप्त होने से श्राप पदमगर्भ हैं ||७२२|| ॐ ह्रीं श्री जगगर्भाय नमः ॥ ७२३ ॥ श्रापके ज्ञान के भीतर समस्त जगत होने से आप जंगल गर्भ हैं || ७२३ ॥ ॐ ह्रीं गर्भाय नमः || ७२४ ॥ श्रापका आत्मा स्वर्ण के समान निर्मल होने से प्रथवा गर्भावतार के समय सुवर्ण की वर्षा होने से आप भगर्भ हैं ।।७२४ ।। ॐ ह्रीं सूदनाय नमः || ३२५|| आपका सुन्दर दर्शन होने से आप सुदर्शन हैं ।। ७२५ ।। लक्ष्मी नमः ॥७२६ ।। समवशरणादि ऐश्वर्य सहित होने से आप लक्ष्मीत्रान् ॐ हैं ७२६॥ ॐ ह्रीं त्रिदशाध्यक्षाय नमः ||७२७|| देवों को प्रत्यक्ष होने से अथवा तेरह प्रकार के चारित्र को धारण करने वाले मुनियों को प्रत्यक्ष होने से अथवा वाल, युवा, वृद्ध तीनों ग्रवस्थाओं में एक सा प्रत्यक्ष होने से आप त्रिदशाध्यक्ष हैं ||७२७॥ ॐ ह्रीं श्रहं दृढीयसे नमः || ३२८ || प्रत्यन्त दृड होने से आप दृढीयान हैं ॥ ७२८ || ॐ ह्रीं श्रीं इनाय नमः | ७२६|| सबके स्वामी होने के आप इन हैं ||७२६ || ॐ ह्रीं अर्ह ईशिताय नमः ॥७३०|| तेजोनिधि अर्थात् ऐश्वर्यवान् होने से आप ईशिता ॥७३०॥ ॐ ह्रीं श्रीं मनोहराय नमः ॥७३१|| भव्य जीवों के अंतःकरण को हरण करने से आप मनोहर हैं || ७३१|| ॐ ह्रीं यह मनोज्ञांगाय नमः ॥७३२ || अंग उपंग मनोहर रहने से आप मनोज्ञांग हैं ||३२|| ॐ ह्रीं अर्ह धीराय नमः || ७३३ || बुद्धि को प्रेरणा देने से अथवा भव्य जीवों को सुबुद्धि देने से श्राप धीर हैं ।। ७३३॥ ॐ ह्रीं श्रहं गंभीरशासनाय नमः | ७३४|| आपका शासन अथवा शास्त्र गंभीर होने से आप गंभीरशासन हैं ||७३४ ।। ॐ ह्रीं अर्ह धर्मपाय नमः || ७३५|| आप धर्म के स्तंभ होने से धर्मयुप हैं ।।७३५ ।। ॐ ह्रीं श्रहं दयायागाय नमः ||७३६ || सब जीवों पर दया करना एवं आपकी पूजा होने से आप दयायाग है ।।७३६ ॥ ॐ ह्रीं श्रर्ह धर्मनेमिने नमः || ७३७ || धर्मरूपी रथ की धुरी होने से श्राप धर्मनेमि हैं || ७३ ॥ ॐ ह्रीं मुनीश्वराय नमः ।।७३८ || आप मुनियों के ईश्वर होने से मुनीश्वर हैं || ७३८६|| धर्माधाय नमः || ७३६ ॥ धर्मचक्र ही आपका आयुध होने से श्राप धर्मचक्रायुध ॐ ह्रीं हैं ।।७३६ ॥ ॐ ह्रीं ग्रह देवाय नमः ॥ ७४० ॥ परमानन्द में क्रीड़ा करने से आप देव हैं || ३४० ॥ ॐ ह्रीं ग्रह कर्महाय नमः | ७४१ || शुभाशुभ कर्मों को नाश करने से आप कर्महा है ||७४१ | ॐ ह्रीं ग्रई धर्म घोषणाय नमः ॥ ७४२ || धर्म का उपदेश देने से आप धर्मघोषण हैं || ७४२ ॥ ॐ ह्रीं अमोघवाचे नमः ॥७४३ || श्रोताजनों को यथार्थ बोध कराने वाली आपकी वाणी होने से आप अमोघवाक् हैं ||७४३ ॥ ॐ ह्रीं श्रहं अमोघाज्ञाय नमः ॥ ७४४ || आपकी आज्ञा कभी व्यर्थ न होने से श्राप अमोघाज्ञ हैं ।। ७४४ ।।
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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