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________________ ५ गमोकार प्रय ॐ ह्रीं प्रहं तंत्र कृते नमः ।।२७४।। प्रागम के मुख्य कर्ता होने से भाप तन्त्रकृत है ॥२७४११ ॐ ह्रीं अहं स्वांताय नमः ।।२७५।। गुद्ध अंतःकरण होने से आप स्वांत हैं ॥२७॥ ॐ ह्रीं अहं कृतांताय नमः ।।२७६॥ यम अर्थात् मरण को नाश करने से प्राप कृतात कहलासे हैं ॥२७६॥ ॐ ह्रीं प्रहं कृतांतकृते नमः ॥२७॥ यम अर्थात मरण को नाश करने से पौर पुष्य की वृद्धि के कारण होने से भाप कृतांतकृत हैं ॥२७७॥ ॐ ह्रीं अहं कृतये नमः॥२७८|| प्रवीण अथवा अतिशय पुण्यवान् तथा हरिहरादि द्वारा पूज्य होने से पाप कृती हैं 11२७८11 ___ॐ ह्रीं अहं कृतार्थाय नमः ॥२७६।। मोक्ष रूप परम पुरुषार्थ को सिद्ध करने से पाप कृतार्थ ३२४ ॐ ह्रीं मह सत्कृत्याय नमः ॥२८०।। माप का कुल्य अतिशय प्रशंसनीय होने से पाप सस्कृत्य हैं ॥२०॥ ॐ ह्रीं प्रहं कृतकृत्याय नमः ।।२८ करने योग्य समस्त कार्य करने से अथवा समस्त कार्य सफल होने से प्राप कृतकृत्य हैं ॥२१॥ ____ॐ ह्रीं मह कृतकृत्वे नमः ।।२२।। ध्यान रूपी अग्नि में कर्म, नौ कर्म मादि को भस्म करने से अथवा ज्ञान रूपी यश करने से प्रथवा तपश्चर्या रूपी यज्ञ समाप्त होने से प्राप कृतकृत्य हैं ।।२८२॥ ॐ ह्रीं अहं नित्याय नमः ॥२८३॥ अविनाशो होने से प्रर्थात् सदा वर्तमान रहने से माप नित्य हैं।र८३॥ ॐ ह्रीं अहं मृत्युंजयाय नमः ॥२८४।। मृत्यु को जोतने से पाप मृत्युन्जय हैं ।।२८४।। ॐ ह्रीं भर्ह अमृतये नमः ।।२८५।। मापका प्रात्मा कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होता इसलिए आप अमृत्यु हैं ।।२८५॥ ॐ ह्रीं अह अमृतात्मने नमः ॥२८६॥ मरण रहित होने से प्रयवा अमृतस्वरूप शांतिदायक होने से पाप अमृतात्मा हैं ।।२८६।। ॐ ह्रीं पहं अमृतोद्भवाय नमः ।।२८७।। जन्म मरण से रहित होने के कारण अथवा अनिश्वर अवस्था को प्राप्त होने से अथवा भव्य जीवों के लिये मोक्ष प्राप्ति का कारण होने से पाप समतोद्भव हैं ॥२७॥ ___ॐ ह्रीं मह ब्रह्मनिष्ठाय नमः ॥२८॥ शुद्ध पात्मा में तल्लीन रहने से आप ब्रह्मनिष्ठ कहलाते हैं ॥२८॥ ॐ ह्रीं अहं परब्रह्मणे नमः ॥२८६॥ सबसे उत्कृष्ट प्रथया केवलज्ञान को धारण करने से पाप परब्रह्म हैं. ॥२८६) ॐ ह्रीं अहं ब्रह्मात्मने नमः ॥२६० ज्ञान स्वरूप होने से पाप ब्रह्मात्मा हैं ॥२६॥ ॐ ह्रीं महं ब्रह्मसंभवनाय नमः ।।२६१३ पाप से जान की उत्पत्ति होती है अथवा शुद्धात्मा की प्राप्ति होती है इसलिए आप ब्रह्मसंभव हैं ॥२६॥ ॐ ह्रीं मह महाब्रह्मपतये नमः ।।२६ गणरादि बड़े शानियों के स्वामी होने से पाप महाबह्मपति हैं ॥२६॥
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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