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णमोकार पंथ
प्रकार वे विचारते चले जा रहे थे कि राजमहल को किसी दासी ने यह सब समाचार गुणमाला से जाकर कह दिया। यह सुनते ही वह मुछित होकर भूमि पर गिर पड़ी। जब सखियों ने शीतलोपचार करके मूर्छा दूर की तो 'हे स्वामिन् , है स्वामिन' कहकर चिल्ला उठी और दीवं निश्वास लेती हुई तत्काल ही श्रीपाल जी के निकट पहुँची एवं उन्हें देखते ही पुन: मूच्छित होकर गिर पड़ी । जब मूर्छा दूर हुई तो भयभीत मृगीवत् सजल नेत्रों से पति की ओर देखने लगी और अति आतुर होकर पूछने लगी-"भो स्वामिन् ! मझ दासो पर कृपा करो और सत्य-सत्य कहो कि प्राय कौन और किसके पूत्र हैं और इन भांडों ने प्राप पर यह मिथ्यारोपण कैसे किया?"
तब थोपाल योले-- "प्रिये ! मेरा पिता भांड और मेरी माँ भाँडिनी है और सब भांड मेरे कुटुम्बी हैं । इस बात की इस समय साक्षी भी हो रही है । इसमें सन्देह ही क्या ?''
तब गुणमाला बोली--''हे स्वामिन् ! यह समय हास्य का नहीं हैं। कृपाकर यथार्थ कहिए । आपने पहले तो मुझसे कछ और ही कहा था और मझे उसी पर विश्वास है। परन्तु आज कुछ विचित्र ही चमत्कार देख रही हूं। मुझे विश्वास नहीं होता आपके माता-पिता भांड होंगे । अापका नाम, काम, रूप, शोल, गुण, साहस और दया किंचित् भी उनसे नहीं मिलते | प्रतएव सत्य कहिए।"
तब श्रीपाल बोले .. 'हे प्रिये ! तू चिंता मत कर और अपना शोक दूर कर । समुद्र के तट पर जो जहाज ठहरें हैं उनमें एक ग्यणमंजूषा नाम की सुन्दरी है । सो तू उससे जाकर सव वृतांत पूछ ले । वह सब जानती है सो तुझसे कहेगी।"
यह सुनते ही वह सती शीघ्र ही समुद्र के किनारे गई और 'रयणमंजूषा कहकर वहाँ पुकारने लगी । तब रयणमंजूषा ने सुनकर विचारा कि यहाँ परदेश में कौन मुझसे परिचित है ? चलू देखू तो सही कौन हैं और क्यों बुला रहा है ? यह सोचकर बह जहाज के ऊपर आकर देखने लगी तो सामने एक अति सुकुमार स्त्री को रुदन करते हुए देखा। उसे देखकर रयणमंजूषा करुणामय मधुर स्वर से योली-“हे बहिन ! तु क्यों रो रही है और क्यों इतनी अधीर हो रही है ? तू कौन है और यहां तक कैसे प्राई ?"
तब गुणमाला ने अपने ग्रागमन का प्राद्योपांत वर्णन करते हुए निवेदन किया-"हे स्वामिनी ! तुम इसके विषय में क्या जानती हो सो कृपाकर यथार्थ कहो जिससे मेरे पति की प्राण रक्षा हो । मुझ अनाथ को पति · भिक्षा देकर सनाथ करो।"
तब रयणमंजपा बोली- हे बठिन ! तशोकमत कर वह पुरुष चरम शरीरी, महाबली और उत्तम राजवंशीय है, मरने वाला नहीं है। चल मैं तेरे पिता के पास चलती हूं और वहाँ वृतान्त कहूंगी।"
रयणमंजूश श्रीपाल का नाम सुनते ही हर्ष से रोमांचित हो गई और शीघ्र ही राजसभा में पाकर महाराज से पुकार की -''हे महाराज, प्रतिपालक, दीनबंधु, न्यायपरायण ! हम दोनों की प्रार्थना पर ध्यान दीजिए। हम लोगों का सर्वस्व हरण हुमा जाता है । हम लोगों पर दया कीजिए।"
राजा ने उसकी पुकार सुनकर उसे सामने बुलाया और पूछा-"हे सुन्दरी ! क्या पुकार कर रही हो? तुम को निष्कारण किसने सताया है शीघ्र कहो।"
तब वह हाथ जोड़कर बोली-“महाराज ! हमारे पति श्रीपाल को जो सूली दी जा रही है उसका न्याय होना चाहिए।"