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________________ णमोकार ग्रंथ ሃያ (२२) हरिद्र, (२३) पप, (२४) लोहित, (२६) नंद्यावर्त, (२७) प्रभंकर, (२८) पृथक् (२९) गज, (३०) मित्र और (३१) प्रभ-नाम के धारक इकतीस पटल है । सनत्कुमार माहेन्द्र युगल में (१) अंजन, (२) बनमाल (३) नाग, (४) गरुड़ । ५) लांगल, (६) बलभद्र और (७) चक्र नाम के धारक सात पटल हैं। ब्रह्म ब्रह्मोसर युगल में अरिष्ट, सुरक, ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर नाम के चार पटल हैं। लांतव और कापिष्ट युगल में ब्रह्महृदय और लांतब नाम के दो पटल हैं । शुक्र, महाशुक्र युगल में शुक्र नामक एक ही पटल है। सतार और सहस्त्रार युगल में सतार नामक एक ही पटल है । आनत, प्राणत युगला में पाना प्राणत और पुष्कर नामक तीन पटल है। पारण, अच्यूत यूगल में सातक, प्रारण और प्रयुक्त नामक तीन पटल हैं। इस प्रकार पाठ युगलों के बावन पटल हैं। इनके ऊपर ग्रेवेयक के तीन त्रिकों के सुदर्शन, प्रमोध, सुप्रबुध, यशोधर, सुभद्र, सुविशाल, सुमनस, सौमनस और प्रीतिकर—ये नव पटल हैं। नव अनुदिशों का एक आदित्य नामक एक पटल है । अन्त के पंत्रानुत्तरों में सर्वार्थसिद्धि नामक एक अन्तिम पटल है । इस प्रकार समस्त तरेसठ पटल हैं।। सूदर्शन मेरू की चुलिका के ऊपर बालाग्न प्रमाण अन्तराल छोड़कर तो पहला ऋजक नामक इन्द्रक पटल है। तदपरि मध्य में असंख्यात योजन प्रमाण अन्तराल छोडकर द्वितीय पटल है। सो प्रकार ऊपरोपरि मध्य में असंख्यात योजन अन्तराल छोड़कर तरेसठ पटल स्थित हैं । अन्त का सर्वार्थ सिद्धि नामक पटल सिद्धक्षेत्र से बारह योजन नीचे है। प्रत्येक पटल के मध्य में जो एक विमान होता है उसको इन्द्रक विमान कहते हैं सो मेरू पर्वत पर तो ऋजुक नामक इन्द्रक विमान है। इस ऋजक नामक इन्द्रक विमान की सीध में ऊपर ऊपर वाले प्रत्येक पटलों में एक एक दन्द्रक विमान होता है। पटलों के नाम के अनुसार ही इन्द्रक बिमानों के नाम हैं। इन इन्द्रक विमानों को पूर्व पश्चिमोत्तर दक्षिण दिशाओं में जो पंक्ति बद्ध विमान होते हैं उन्हें श्रेणीवद्ध विमान कहते हैं। उन श्रेणीबद्ध विमानों के मध्य के अन्तराल में विदिशाओं में पक्ति रहित जहां तहाँ फैले हुए विखरे हुए वर्षा किए पुष्पोंवत जो होते हैं उन्हें प्रकीर्णक विमान कहते हैं। प्रथम पटल के ऋजुक नामक इन्द्रक पटल की चारों दिशामों में बासठ बासठ श्रेणीबद्ध विमान हैं अतः चारों दिशाओं के समस्त दो सौ अड़तालीस श्रेणीबद्ध विमान हुए। आगे आगे के द्वितीयादि पटलों के इन्द्रकों की प्रत्येक दिशानों में एक एक श्रेणीबस विमान हीन होने से प्रत्येक पटल में चार चार विमान श्रेणीवद्ध न्यून होते चले गये हैं। यहां तक कि बासठवें पटल (नव अनुदिश) में चारों दिशाओं में एक एक अर्थात समस्त चार धणीबद्ध विमान हैं। इन श्रेणीबद्ध विमानों के अन्तराल में पंक्ति रहित जहां तहाँ फैले हुए तारोंवत प्रकीर्णक विमान होते हैं। ये प्रकीर्णक विमान संख्या में प्रत्येक कल्प के श्रेणीबद्ध व इन्द्रकों के संकलन को कल्प के समस्त विमान प्रमाण में घटा देने से जो अबशेष रहे उतने ही जानने चाहिए। जैसे सौधर्म स्वर्ग में समस्त बत्तीस लाख विमान हैं। पूर्व दक्षिण पश्चिम -ये तीन दिशा और नैऋत्य, प्राग्नेय विदिशा के श्रेणीबद्ध तथा प्रकीर्णक और इन्द्रकों पर तो दक्षिणेन्द्र की आज्ञा होती है और उत्तर दिशा वायव्य, ईशान विदिशाभों क श्रेणीबद्ध तथा प्रकीर्णक विमानों पर उत्तरेन्द्र की याज्ञा होती है। जिन विमानों पर दक्षिणेन्द्र की भाशा होती है उन विमानों के समुदाय को सौधर्म स्वर्ग और जिन विमानों पर उत्तरेन्द्र की माशा होती है उनके समुदाय को ईशान स्वर्ग कहते हैं जिस प्रकार प्रायः यहाँ पर भी अपने स्वामी के नाम की अपेक्षा बहुत से नगर व ग्रामों के तत्सदृश नाम होते हैं। सनत्कु
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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