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________________ णमोकार ग्रंथ जिनमें इंद्रादिकों की कल्पना नहीं है ऐसे ग्रंवेयन आदि देवों को अपने अपने विषय में दूसरों की अपेक्षा न रखने से अहमिन्द्र कहते हैं। जिनमें से प्रथम कल्प जो स्वर्ग है उनके नाम कहते हैं । वे कल्प संज्ञापेक्षा १. सौधर्म, २. ईशान, ३. सनत्कुमार ४. माहेन्द्र, ५. ब्रह्म, ६. ब्रह्मोत्तर, ७. लांतव, पापिष्ट... शुक्र, १०. महाशुक ११. लतार, १२. सहस्रार १३. मानत १४. प्राणत १५. पारण और १. अच्यूत-इस प्रकार साल है। इन नालहो के जैसे सोधम १और ईशान का युगल एक-२ और दारा सनत्कुमार तथा माहेंद्र का गुगल दूसरा-ऐसे दो-दो स्वर्गा के क्रमशः उपरोपरि माठ युगल हैं। प्रागे इनके ऊपर स्थित काल्पातील विमानों के नाम कहते हैं आठ युगलों के ऊपर क्रमशः अधस्तन, मध्यम गौर उपरिम नामक नव वेयकों के तीन-नोन पिक, नव अनुदिश विमान हैं। इनमें रहने वाला प्रत्येक देव इन्द्र के समान मुख के भोगता होने से ग्रहमिन्द्र कहलाते हैं । अागे नव अनुदिश और पंचान्तरों के विमानों के नाम कहते हैं। चि. चिमालिनी, वैर पीर वैरोचन--ये चार विमान तो क्रमशः पूर्व, दक्षिण, पश्चिमोत्तर और सोम. सोमम्प, ग्रंक तथा रफटिक-ये चार प्रकीर्णक विमान विदिशाओं में और मादित्य स्तक विमान मध्य में ऐसे नव प्रनुदि विमान हैं । विजय, वैजन्त, जयन्त तथा अपराजित-ये चार अंणीवद्ध विमान पूर्वादि दिशानी में पीर सायसिद्धि नामक विमान मध्य में ऐसे पांच अनत्तर विमान हैं। इस प्रकार कहे हुए कल्प और नालातीत विमान के स्थिति स्थान को कहते हैं। दम चिया पृथ्वी से एक लाख योजन ऊँचा तो सुमेरु पर्वत है। मुमेरु पर्वत की चूलिका मेनाभिगिरि (मेरुपर्वत) की उन्नतता विहीन डेढ़ राजू की ऊँचाई तक सौधर्म और ईशान युगल है। सौधर्म, ईशान युगल से उदराजूनी ऊचाई तक सनत्कुमार, माहेंद्र युगल है। सनत्कुमार, माहेन्द्र युगल के ऊपर ब्रह्म--ब्रह्मोत्तर १. लागब-कपिष्ट . शुक्र-महाशुक्र ३. सतार-सहस्त्रार ४. प्रानत--प्राणत पारण.-अच्यत ६- छह युगल क्रमशः प्राध-प्राधं राजू में हैं । इस प्रकार आठों युगल छह राज में उनके पर सातबंयोजन के आदि में नव गवयक, मध्य में नव अनुदिश और अन्त में पंचानत्तर विमान हैं। अब आगे सौधर्म आदि कल्प और | वेयक आदि कल्पातीतों के विमानों की संख्या कहते हैं .. सौधर्म स्वर्ग में बत्तीस लाख, ईशान स्वग में अठाईस लाख, सनत्कुमार में बारह लाख, माहेन्द्र में ग्राउ लाख. ब्रह्म ग्रह्मास्तर युगल म चार लाख, लतिष और कापिष्ट युगल में पचास हजार, शुक्र, महाशक में चालीस हजार, सतार, सहस्त्रार युगल में छह हजार, ग्रानत,प्राणत, पारण और अभ्यत -इनमें सात सौ विसाल है। इस प्रकार सोलह स्वगों में समस्त चौरासी लाख, छयाणवे हजार, सात सौ विमान हैं। मागे इनके ऊपर वेयक के अधस्तम त्रिक में एक सौ ग्यारह, मध्यम त्रिक में एक सौ सात, उपरिकनिक में नाणावें अदिश में नव और अनुतर म पाँच विमान जानने चाहिए। इस प्रकर कल्पातीतों के विमानों का संकलन करने पर समस्तचौरासी लाख, सत्ताणवे हजार तेईस विमान हैं इन सब विमानों में एक-एक जिन मंदिर है इस कारण इतने ही चबालय हैं उन सब में उत्कृष्ट प्रवगाहना परिमित जिन प्रतिमा विराजमान हैं उन सबको त्रिकरण शुद्धतापूर्वक मेरा बारम्बार नमस्कर हो । आगे कल्प और कल्पातीतों की पटल संख्य कहते हैं सौधर्म ईशान युगल में (१) ऋजु, (२) विमल, (३) चन्द्र, (४) वल्गु, (५) वीर, (क) अरुण, (७) नन्द, (८) नलिन, (कांचन, (१०) रोहित, (११) चंचत, (१२) मरुत, (१३) उद्वाश (१४) वंडर्य, (१५) रुचक, (१६) रूचि, (१७) प्रक, (१८) स्फनिक, (१९)तपनीय, (२०) मेघ, (२)ब,
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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