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________________ णमोकार पंथ प्रादि पकाने के विधान के विधता होंगे। इनके समय में परस्पर मंत्री, लज्जा, सत्य, दया, समय प्रादि उत्तम गुणों को प्रवृत्ति और सर्व धान्य, फल, पुष्प अादि और मनुष्य को संतति को वृद्धि होगी । इनमें से प्रथम कुलकर का शरीर कुछ कम चार विलस्त प्रमाण और अन्तिम कुलकर का सात हाथ परिमित होगा 1 इस प्रकार पंचम (उत्सपिणो के दूसरे ) काल के समाप्त होने और बयालीस हजार तीन वर्ष एक कोटा कोटी वर्ष परिमित चौथे काल के प्रारम्भ होने पर जिस प्रकार अवसर्पिणी काल के चतुर्थ काल में श्री ऋषभ आदि तीर्थंकरों ने अवतरित होकर भरत क्षेत्र में अपने तीर्थ की प्रवृत्ति की उसी प्रकार चतुविशति तीर्थकर आविर्भत होकर पुनः भरत क्षेत्र में अपने तीथं की प्रवृत्ति करेंगे। उनके नाम इस प्रकार होंगे--- (१) प्रादि में श्रेणिक का जौब महापन (२) सुपार्श्व का जीव सुरदेय, (३) तीसरे उदकसंज्ञक का जीव सुपार्श्व, (४) प्रौष्ठिलाग्य का जीव स्वयं प्रभ, (५) कटशु का जीव सर्वात्मभूत, (६) क्षत्रिय का जीव देव पुत्र, (७) श्रेष्ठसशक का जीव कुलपुत्र, (८) शंख का जीव उदंक, (९) नन्दन का जीव प्रौष्ठिल, (१०) सुनंदवाक का जोत्र जयकीति, (११) शशांक का जोव मुनिसुव्रत, (१२) सेवक का जीव अरसंज्ञक, (१३) प्रेमक का जीव निःपाए. (१४) संज्ञक का जीव निष्कषाय, (१५) रोचन का जीव विपुल, (१६) वासुदेवाख्य (कृष्ण) का जीव निर्मल, (१७) बलदेव का जीव चित्रगुप्त, (१८) भगलि का जीव समाधि गुप्त, (१६) विगलि का स्वयंभूर, (२०) द्वीपायन का जीव प्रनिवर्तक, (२१) कनक संज्ञक का जीव विजय, (२२) नारदमाद का जीव विमल, (२३) चारुपाद का जीव देवपाल और (२४) सात्यकितनय का जीव अनन्तवीर्य नामक चौबीसवां तीर्थकर होंगे । प्रथम तीर्थकर का शरीर पाँच सौ धनुष उन्नत मोर एक कोटि पूर्व को प्रायु होगी। उनका भी अवसर्पिणी काल के तीर्थ करों के समान चतुनिकाय देव, इन्द्र प्रादि गर्भ, जन्म, तप ज्ञान और निर्वाणोत्सव करेंगे। इसी प्रकार समवशरण प्रादि को रचना की जाएगी । इतना विशेष जरूर होगा कि अवसपिणी काल के तीर्थकरों का तो समवशरण प्रमाण प्रथम तीर्थकर के समवशरण से चौबीसवें तीर्थकर तक घटता चला जाता है परन्तु उत्सपिणो में इसके प्रतिकूल होता है अर्थात् प्रथम तीर्थकर के प्रमाण से चौबीसवें तीर्थकर के समवशरण तक बढ़ता चला जाएगा। भविष्य में तीर्थंकरों के समयवर्ती जो बारह चक्रवर्ती होंगे उनके नाम इस प्रकार हैं (१) भरत, (२) दीर्घदंत, (३) मुक्तिदंत, (४) गूढ़दंत, (५) श्रीषेण, (६) श्रीभूति, (७) श्रीकांत, (८) पद्य, (६) महापद्म, (१०) चित्र वाहन, (११) विमल वाहन, (१२) अरिष्ठसेन-ये बारह चक्रवर्ती पहले चक्रवतियों के समान ननिधि, चौदह रत्न, चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख रथ, मठारह करोड़ घोड़े, चौरासी करोड़ शूरवीर, छयामवें हजार रानियां, सदा सेवा में तत्पर रहने वाले बत्तीस हजार बड़े-बड़े राजा और संसार श्रेष्ठ संपत्तियुक्त देव व विद्याधरों द्वारा सेव्य होंगे। प्रागामी काल में नारायण के ज्येष्ठ भ्राता जो नव बलभद्र होते हैं उनके नाम इस प्रकार होंगे (१) चन्द्र, (२) महाचन्द्र, (३) चन्द्रधर, (४) हरिचन्द्र, (५) सिंहचन्द्र, (६) वरचन्द्र, (७) पूर्णचन्द्र, (८) शुभचन्द्र, (६) श्रीचन्द्र-ये नव बलभद्र केशवों द्वारा पूजित होगे। भविष्य में (१) नंदि, (२) नंदिमित्र, (३) नंदिषेण, (४) नंदिभूति, (५) अचल, (६) महाबल, (७) अतिबल, (८) त्रिपुष्ट और (द्विपृष्ट-ये नव नारायण होंगे जो पूर्वज केशवों के समान त्रिखंडेश होंगे और मागामी काल में इनके प्रतिशत्रु जो प्रतिनारायण होंगे उनके नाम होंगे
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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