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णमोकार ग्रंथ
पांच रुद्र सुप्रतिष्ठ-ये श्री श्रेयांसनाथ भगवान के समय में हुए । इनका शरीर प्रमाण अस्सी धनप और प्राय प्रमाण चौरसी लाख वर्ष था ।५।
ठे रुद्र अचल--ये श्री वासुपूज्य भगवान के समय में हुए। इनका शरीर प्रमाण सत्तर धनुप और पाप्रमाण साठ लाख वर्ष था।६।
ग़ातवें रुद्र पुंडरीक—ये थी विमलनाथ भगवान के समय में हुए। इनका शरीर प्रमाण साठ धनुप और यार प्रमाण पचास लाख वर्ष था ।
साटवें गद्र अजितधर--- ये श्री अनन्तनाथ भगवान के समय में हुए। इनका शरीर प्रमाण पचास धनुप और प्रायु प्रमाण चालीस लाख वर्ष था 1८1
नरद्र श्री अजितनाभि-- ये श्री धर्मनाथ भगवान के समय में हुए। इनका शरीर प्रमाण अठाईस धनुा सौर प्रायु प्रमाण बीस लाख वर्ष पूर्व था ।।।
दसवें रुद्र पीठ—ये श्री शांतियाथ भगवान के समय में हुए। इनका शरीर प्रमाण चौबीस धनुष और प्राय प्रमाण एक लाख वर्ष था।१०।
ग्यारहवें रुद्र सात्यकी-श्री महावीर स्वामी के समय में हुए । इनका शरीर प्रमाण सात हाथ और नाच प्रमाण उनहत्तर वर्ष था।११।
ये सर्व रुद्र ग्यारह अंग और दस पूर्व के पाटरी होते हैं। इस प्रकार अवसपिणी काल के ग्यारह रुद्रों वायु कायादि वर्णन किया।
___ अथ चतुविशति कामदेव वर्णनम् अब पागे चौबीस कामदेवों का वर्णन लिखते हैं -- इस बर्तमान चौथे काल में जो चौबीस कामदेव हुए हैं उनके नाम इस प्रकार हैं
(१) बाहुबली, (२) अमिततेज, (३) श्रीधर, (४) यशद्रभ, (५) प्रसेनजित, (६) चन्द्रवर्ण, प्रग्निमक्ति (2) सनत्कुमार (चक्रवर्ती), () वत्सराज, (१०) कनकप्रभ, (१) सिद्धवर्ण (१२) शांतिनाथ (तीर्थकर). (१३) कुथनाथ (तीर्थकर), (१४) अरहनाथ (तीर्थकर) (१५) विजय राजा, (१६) श्रीचन्द्र, (१७) राजानल, (१८) हनुमानजी, (१६) बलगजा, (२०) वसुदेव, (२१) प्रद्युम्न, (२२) नागकुमार, (२३) श्रीपाल और, (२४) जम्बूस्वामी--ये चौबीस कामदेव बल, विद्या पौर रूप में प्रत्यन्त श्रेष्ठ होते हैं । इनके रूप को देखकर सर्व स्त्री पुरुष मोहित हो जाते हैं।
इस प्रकार चौथेकाल में प्रत्येक चौबीस तीर्थकर बारह चक्रवर्ती, नव नारायण, नव प्रतिनारायण, नव बलभद्र (ये वेसठ शलाकापुरुष कहलाते हैं), नव नारद, ग्यारह रुद्र, चौबीस कामदेव और चौदह कुलकर- सब मिलाकर एक सौ इक्कीस तो यह और प्रत्येक तीर्थकर के माता-पिता अर्थात् चौबीस तीर्थंकरों के अड़तालीस माता-पिता - ये सर्व एक सौ उनहत्तर १६६ पुण्य पुरुष होते हैं अर्थात् जितने पुण्यवान् पुरुष हुए हैं उनमें ये मुख्य गिने जाते हैं। इनमें से कितने तो उसी भव से मोक्ष चले जाते हैं
और कितने कुछ काल संसार में भ्रमण करके मोक्ष चले जाते हैं अर्थात् ये सर्व ही मोक्षगामी होते हैं। इनक अतिरिक्त और भी असंख्यात जीव कर्मों का नाशकर सिद्धगति प्राप्त करते हैं। इनमें नारायण, प्रतिनारायण, बलभद्र और नारद--ये चार तो एक ही समय में उत्पन्न होते हैं। एक पद के धारक की उपस्थिति में उसी पदवी का धारक दूसरा उत्पन्न नहीं हो सकता जैसे कि एक तीर्थकर की स्थिति जब तक रहती है तब तक दूसरे तीर्थकर की उत्पत्ति नहीं होती परन्तु प्रतिनारायण की स्थिति में नारायण