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________________ णमोकार मंच मब जन्म के दस अतिशयों का वर्णन करते हैं : दोहा-- अतिशय रूप सुगन्ध तन, नहीं पसेव निहार । प्रिय हित वचना, अतुल बल, रुधिर श्वेत प्राकार ॥ लक्षण सहस अरु पाठ तन, समचतुष्क संठान । बनवृषभनाराचयुत, ये जनमत दस जान ॥ अर्थ-(१) अत्यन्त सुन्दर शरीर है, वह ऐसा नहीं है, कि जैसा काले नाग की फुकार से विष्णु जी का शरीर श्याम वर्ण हो गया, ऐसा शरीर नहीं कि जैसे शिवजी के शरीर में रोग हो जाने से धतूरे का सेवन किया जिससे कि वह रोग जाता रहा, ऐसा श्री जिनेन्द्र भगवान का शरीर नहीं होता। जिनेन्द्रदेव के शरीर की प्रशंसा व स्तुति इन्द्रादि भी अपनी सहस्र जिह्वा से करते समय असमर्थ हो गए तो फिर मनुष्य की बात ही क्या है ? (२) जिनका शरीर अत्यन्त सुन्दर व सुगन्धित है उनके शरीर सुगन्धि से रोगियों का रोग नाश हो जाता है। (३) अस्वेद-भगवान का शरीर पसीने से रहित होता है । यदि पसीना पा जाय तो उससे दुर्गन्ध का प्रसंग आ जाता है इसलिए भगवान् के शरीर में पसीने का प्रभाव है। (४) भगवान् जिनेन्द्र देव के शरीर में मल मूत्र नहीं। यदि मल मूत्र होता तो उनके शरीर में दुर्गन्ध अवश्य पाती । अतः जिनेन्द्र भगवान् का शरीर अत्यन्त सुगन्धित है। (५) जिनेन्द्र भगवान् का हितमित वचन-हित का अर्थ सभी जीवों के लिए हितकारा अर्थात् सन्देह उत्पन्न न करने वाला हो, ऐसा अल्प बचन, प्रिय कहिए अमृत के समान प्रिय वचन जैसे अमृत रोग को दूर करता है बसे भ्रम रूपी रोग को हरण करने वाला श्री जिनेन्द्र भगवान का वचन होता है। ऐसे नाम मात्र के महादेव के समान वचन नहीं कि किसी को वर दिया और किसी को श्राप भगवान् जिनेन्द्रदेव के वचन ऐसे कदापि नहीं होते। (६) प्रतुल बल-जिनके शरीर के पराक्रम के समान किसी अन्य का पराक्रम या वल नहीं है। (७) दुग्धवत् श्वेत वर्ण के समान रुधिर होता है । (८) समचतुरस्त्र संस्थान- अर्थात् जिनका शरीर ऊँचे नीचे और मध्य में समान भाग से यथायोग्य प्राकृति वाला है। भावार्थ-- जैसे सांचे में ढ़ाली हुई वस्तु ज्यों की त्यों सुन्दर रहती है उसी प्रकार परम शान्त मुद्रा भगवान् का शरीर सुशोभित रहता है । (8) पनवृषभनाराच संहनन-अर्थात् जिनेन्द्र भगवान के शरीर में वज्र अर्थात् रुप्टन, नाराच अर्थात् कील और संहनन अर्थात् अस्थि पंजर-- ये तीनों ही वन के समान अभेद्य हैं । इस कारण श्री जिनेन्द्र देव का वल भी प्रवर्णनीय है। ___ भगवान् श्री जिनेन्द्रदेव के शरीर में १००८ शुभ लक्षण होते हैं जिनमें से कुछ लक्षणों को यहां कहेंगे।
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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