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णमोकार ग्रंथ
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पौर ५८ साख पूर्वांग | पाणिग्रह किया। दीक्षा तिथि-कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी। दीक्षावक्ष-प्रियंग वृक्ष । तपोवन (सहस्राभ्र वन) कौशाम्बी। वैराग्य का कारण-हाथी के भोजन न करने का समाचार सुनना । दीक्षा समय-अपरान्ह । दीक्षा लेने के एक बेला पश्चात् प्रथम पारणा किया। प्रथम पारणा करने के नगर का नाम धान्यपुर-“मंगलपुर" । प्रथम प्राहार दाता का नाम-सोमदत्त । तपश्चरण काल-साई छः वर्ष । केवल ज्ञान तिथि-चैत्रशुक्ल १५ । केवल ज्ञान समय-अपरान्ह काल । केवलज्ञान स्थान-गनोहर बने। समवशरण का प्रमाण-साढ़े नौ योजन । गणधर संख्या-१११ । मुख्यगणधर का नाम-बजवली । वादियों की संख्या-६६०० । बौदह पूर्व के पाठी-२.६६००० । अवधिज्ञानी मुनियों की संख्या १००००। केवलज्ञानी मुनियों की संख्या-१२६०० । विक्रिया ऋद्धिधारी मुनियों की संख्या-१६८०० । मनःपर्ययजानी मुनियों की संख्या-१०३०० । वादित्र ऋद्धिधारी मुनियों की संख्या ८००० । समस्त मुनियों की संख्या-३०२००० । गायिकाओं की संख्या- तुरूप प्रायिका का नाम-रतिसेना । श्रावकों की संख्या तीन लाख । श्रविकाओं की संख्या-पाँच लाख । समवशरण काल-एक लाख पूर्व में बीस पूर्वाग और नौ वर्ष कम । मोक्ष जाने के तीस दिन पहिले समवशरण विघटा । निर्वाण तिथि फाल्गुन वृष्ण ४ । निर्वाण नक्षत्र-चित्रा। मोक्ष जाने का समय अपरान्ह । मोक्ष जाने के समय का प्रासन-कायोत्सर्ग । मोक्ष स्थान-सम्मेदशिखर मोहनकूट । भगवान् के मुक्ति गमन समय १००० मुनि साथ मोक्ष गए । समवशरण से समस्त ३१३६०० मुनि मोक्ष गए। इनके तीर्थ में भी धर्म का विच्छेद नहीं हुआ । अर्थात् इनके निर्वाण होने से सुपावनाथ भगवान् के जन्मपर्यन्त अखंड रीति से धर्म प्रवर्तता रहा था।
॥ इति श्री पद्मप्रभु तीर्थकरस्य विवरणम् ।।
अथ श्री सुपार्श्वनाथ तीर्थकरस्य विवरणम् :श्री पद्मप्रभु भगवान के निर्वाण होने के अनन्तर नन्वै हजार कोटि सागर के बाद श्री सुपाश्वं. नाथ भगवान ने जन्म लिया। इनका पहला भव-वेयक विमान । जन्म स्थान-वाराणर पिता का नाम-श्री सुप्रतिष्ट । माता का नाम-पृथ्वी देवी । इक्ष्वाकु वंश । गर्म तिथि-हरित 1 चिन्हस्वस्तिक । शरीर प्रमाण-२०० धनुष । प्रायु प्रमाण-बीस लाख पूर्व । कुमार काल-५ लाख पूर्व । राज्य काल-१४ लाख पूर्व और २० पूर्वाग। पाणि ग्रहण किया। समकालीन राजा का नामधर्मवीर्य । दीक्षा तिथि-ज्येष्ठ शुक्ल १२ । भगवान् के तप कल्याणक के गमन समय की पालकी का नाम-मनोरमा । भगवान् के साथ दीक्षा लेने वाले राजाओं की संख्या-१००० । दीक्षा वक्ष-शिरीष वृक्ष । तपोवन सहस्त्राभ्र वन (काशी) । वैराग्य का कारण-मेघों का बिघटना देखना। दीक्षा समयअपराह्न । दीक्षा लेने के एक बेला करने के पश्चात् प्रथम पारणा किया । नाम नगर जहाँ प्रथम पारणा किया-पाटली खंड । प्रथम आहार दाता का नाम-महादत्त । तपश्चरण काल-६ वर्ष । केवल ज्ञान तिथि-फाल्गुन कृष्ण ६ । केवल ज्ञान समय-अपरान्ह काल । केवल ज्ञान स्थान-मनोहरवन 1 समवशरण का प्रमाण-६ योजन । गणधर संख्या-६५ । मुख्य गणधर का नाम-चमरवली । वादियों की संख्या७४०० । चौदह पूर्व के पाठी-२०३० । प्राचारांग सूत्र के पाठी शिष्य मुनि-२४४६५० । अवधि ज्ञानी मनियों की संख्या-१००० । केवल ज्ञानियों की संख्या--११३०० । विक्रिया ऋद्धि धारी मुनियों को संख्या-बारह हजार तीन सौ । मनः पर्यय ज्ञानी मुनियों की संख्या-११५० । वादिय ऋद्धि धारी मुनियों की संख्या--७६०० समस्त मुनियों की संख्या-३०००० । मायिकाओं की संख्या-३३००००। पायिका का नाम-सोमा : श्रावकों की संख्या-तीन लाख । धाविकानों की संख्या-पांच लाख । समवशरण काल-१ लाख पूर्व में २४ पूर्वांग और ३ मास कम । मोक्ष जाने के एक मास पहले समवशरण