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________________ २७२ I सनस्थ शिखर ६। निर्वाणनक्षत्र पुनर्वसु । मोक्ष जाने के समय श्रानन्दकूट । भगवान् के मुक्ति गमन समय एक हजार मुनि साथ मोक्ष गए। समवशरण से समस्त दो लाख अस्सी हजार एक सौ मुनि मोक्ष गए। इनके तीर्थ में धर्म का विच्छेद नहीं हुआ अर्थात् इनके निर्वाण गमन से सुमतिनाथ भगवान के जन्म पर्यन्त मखंडरीति से धर्म प्रवर्तता रहा । इति । अथ श्री सुमतिनाथ तीर्थंकरस्य विवरणम् ।। श्री अभिनन्दन नाथ भगवान् के निर्वाण होने के अनंतर नौ लाख कोटि सागर बाद श्री सुमति नाथ भगवान् ने जन्म लिया। इनका पहला भव- वैजयन्त विमान जन्म स्थान साकेता (अयोध्या) । पिता का नाम - श्री मेघ प्रभु | माता का नाम - सुमंगला देवी 1 वंश - इक्ष्वाकु । गर्भं तिथि - श्रावण शुक्ल - २ | जन्म तिथि -- चैत्र शुक्ल ११२ जन्म नक्षत्र - मत्रा दारीर का वर्ण - सुवर्णसम चिन्ह - चातक । शरीर प्रमाण - तीन सौ धनुष आयु प्रमाण ४० लाख पूर्व कुमार काल – १० लाख पूर्व राज्यकाल - १६ लाख पूर्व और १२ पूर्वीग । पाणिग्रहण किया। समकालीन प्रधान राजा -- मित्रवीर्ये । दीक्षा तिथि -- चैत्र शुक्ल ११। भगवान् के तप कल्याणक के गमन समय को पालकी का नाम - प्रभयकरी | भगवान् के साथ दीक्षा लेने वाले राजाओं की संख्या - २००० । दीक्षावृक्ष - प्रियंगुवृक्ष । तपोवन - सहस्राभ्रवन (अयोध्या) वैराग्य का कारण - मेघों का विघटना देखना । दीक्षा समय - श्रपरान्ह । दीक्षा से बेला करने के पश्चात् प्रथम पारणा किया। नाम नगर जहाँ प्रथम पारणा किया - विजयपुर ( महापुर ) । प्रथम श्राहारदाता का नाम - पद्मराय | तपश्चरणकाल - २० वर्ष । केवलज्ञान तिथि - चैत्र शुक्ल ११ । केवलज्ञान समय - अपरान्ह काल | केवलज्ञान स्थान - मनोहरवन । समवशरण का प्रमाण - १० योजन । गणधर संख्या - ११६ | मुख्य गणधर का नाम - चमर । वादियों की संख्या - १०००० चौदह पूर्व के पाठी - २४००० | आचारांगसूत्र के पाठी शिष्य मुनि- २५४३५० । प्रवधिज्ञानी मुनियों की संख्या११००० | केवलज्ञानियों की संख्या - १३००० १ विक्रिया ऋद्धिधारी मुनियों की संख्या - १८४०० । मन:पर्ययज्ञानी मुनियों की संख्या - १०४५० । वादित्र ऋद्धिधारी मुनियों की संख्या - १०६०० | समस्त मुनियों की संख्या -- ३०२०० । प्रायिकाओं की संख्या - ३३०००० | मुख्य प्रार्थिका का नामकाश्यप । श्रावकों की संख्या तीन लाख । श्राविकाओं की संख्या - पांच लाख । समवशरण काल - १ लाख पूर्व में १६ पूर्वांग और छः मास कम । मोक्ष जाने के एक मास पहले समवशरण विघटा। निर्वाण तिथि - चैत्र शुक्ल ११ । निर्वाण नक्षत्र मघा । मोक्ष जाने का समय–पूर्वान्ह । मोक्ष जाने के समय का श्रासन कायोत्सर्ग । मोक्ष स्थान — सम्मेद शिखर प्रविश्वल कूट । भगवान् के मुक्ति गमन समय एक हजार मुनि साथ मोक्ष गए । समवशरण से समस्त २०१६०० मुनि मोक्ष गए। इनके सी में भी धर्म का विच्छेद नहीं हुआ प्रर्थात् इनके निर्वाण होने से श्री पद्मप्रभु तीर्थंकर भगवान् के जन्म पर्यन्त प्रखंड रीति से धर्मं प्रवर्तता रहा । णमोकार ग्रंथ - ॥ इति श्री सुमतिनाथ तीर्थंकरस्य विवरण समाप्तः ॥ अथ श्री पद्मप्रभु तीर्थंकरस्य विवरण प्रारम्भः ॥ श्री सुमतिनाथ भगवान् के निर्माण होने के अनन्तर नब्बे हजार कोटि सागर बाद श्री पद्मप्रभु भगवान् ने जन्म लिया । इनका पहला भव वेयक विमान । जन्म स्थान - कौशाम्बी ( प्रयाग ) । पिता का नाम - श्री धरणराय माता का नाम सुसीमा देवी वंश इक्ष्वाकु वंश | गर्भ तिथि- माघ कृष्ण ६। जन्म तिथि- कार्तिक शुक्ल १३ । जन्म नक्षत्र-चित्रा । शरीर का वर्ण- अरुण वर्ण । चिन्ह-पदम । शरीर प्रमाण - २५० धनुष । मायु प्रमाण ३० लाख पूर्व । कुमारकाल साढ़े सात लाख पूर्व । राज्यकाल २१ लाख पूर्व |
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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