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गमोकार ग्रंथ
सिंह आदि सब पशुदयावत सम्यक मंडित,
षट् दुगुण के विष जान लेहु तुम पंडित ।५। वोहा- क्रूर पशु भी परस्पर, वैर त्याग तिष्टंत ।
यह प्रभु की महिमा अगम, वरने को बुधिवंत ।। इस प्रकार द्वादश सभामों के मध्य अशोक वृक्ष के समीप रत्नमय सिंहासन पर चतुरांगुल अन्तरीक्ष ऋषभ देव भगवान विराजे हुए अपनी निरक्षरी दिव्य ध्वनि द्वारा संसार ताप को नाश करने वाले परम पवित्र उपदेशामृत से अनेक जीवों को दुःखों से छुटाकर सुखी बनाते थे । भगवान के चौरासी गणधर हुए जिनके नाम इस प्रकार हैं
(१) वृषभसेन, (२) कुम्भ, (३) दृढ़रथ, (४) शतधनु, (५) देवशर्मा (६) देवनाव, (७) नन्दन, (८) सोमदत्त, (६) सूरदत्त, (१०) वायुशर्मा, (११) यशोदाहु (१२) देव.ग्नि, (१३) अग्निदेव, (१४) अग्निगुप्त, (१५) मित्राग्नि, (१६) हलभृत, (१७) महीधर, (१८) महेन्द्र, (१९) वसुदेव, (२०) वसुन्धर, (२१) अचल, (२२) मेरु, (२३) मेरुधन, (२४) मेरुभूति, (२५) सर्वयश, (२६) सर्वयज्ञ, (२७) सर्वगाल (२८) सर्वप्रिय. २६) सर्वव, () सर्वविजय (३१) विजयगुप्त (३२) विजयमित्र, (३३) विजयिल, (३४) अपराजित (३५) वसुमित्र, (३६) विश्वसेन, (३७) साधुसेन, (३८) सत्यदेव, (३६) देवसत्य, (४०) सत्यगुप्त, (४१) सत्यमित्र, (४२) निर्मल, (४३) विनीत, (४४) संवर (४५) मुनिगुप्त (४६) मुनिदत्त, (४७) मुनियश, (४८) मुनिदेव, (४६) गुप्तयज्ञ, (५०) मित्रयज्ञ (५१) स्वयंभू, (५२) भगदेव, (५३) भगदत्त, (५४) भगफल्गु, (५५) गुप्तफल्गु, (५६) मित्रफल्गु, (५७) प्रजापति, (५८) सर्वसंग, (५६) वरुण, (६०) धनपालक, (६१) मघवान,(६२) तेजोराशि, (६३) महावीर (६४) महारथ, (६५) विशालाक्ष, (६६)महावाल, (६७) शुधिशाल, (६८) वज, (६६) वज्रसार, (७०) चन्द्रचूल, (७१) जप, (७२) महारस, (७३) कच्छ, (७४) महाकच्छ, (७५) नमि, (७६) विनमि, (७७) बल, (७८) प्रतिबल, (७६) भद्र बल, (८०) नंदी, (८१) महाभाग, (८२) नंदिमित्र, (८३) कामदेव, और (८४) अनुपम ।
इस सबमें वृषभसेन मुख्य जानने चाहिए। भगवान के चतुर्विध संघ का प्रमाण पृथक्-पृथक इस प्रकार जानना चाहिए-वादी-१२६५० । 'चौदह पूर्व के पाठी-४७५० 1 प्राचारांग सूत्र के पाठी शिष्य मुनि-४१५० । अवधिज्ञानी मुनियों की संख्या-९००० । केवलज्ञानियों की संख्या-२०००० । विक्रिया ऋद्धिधारी मुनियों की संख्या-२०६०० 1 मनः पर्ययज्ञानी मुनियों की संख्या-१२७५० । वादित्र ऋद्धिधारी मुनियों की संख्या-१२७५० । समस्त मुनियों की संख्या-८४०००। प्रायिकामों की संख्या७५००००।
मुख्य प्रायिका का नाम ब्राह्मो था । श्रावकों की संख्या--तीन लाख । श्राविकाओं की संख्यापांच लाख । समवशरण काल-एक लाख पूर्व में १००० वर्ष और चौदह दिन कम । मोक्षजाने के चौदह दिन पहले समवशरण विघटा और तब ही भरत चक्रेश्वरो आदि पाठ महान पुरुषों को प्रादिनाथ भगवान के निर्वाणसूचक पाठ स्वप्न पाए जिनके नाम और चिन्ह इस प्रकार है
(१) जिस दिन प्रादिनाथ भगवान ने योगों का निरोध किया उसी दिवस की रात्रि में भरत चक्रवर्ती को ऐसा स्वप्न हुआ कि मानों सुमेरु पर्वत ऊंचा होकर सिसक्षेत्र से जाकर लग गया है।
(२) भरत पक्रवर्ती के पुत्र प्रकीति को ऐसा स्वप्न हुप्रा कि स्वर्ग लोक के शिखर से एक