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________________ गेमोकार पंथ २५५ प्रथ मरक पाथड़ों का काय वर्णनप्रथम नरकम पाय काय तीन हाश स है दूको दायरे में एक धनुष एक हाय साढ़े पाठ अंगुल, तीसरे में एक धनुष तीन हाथ सत्रह अंगुल, चौथे में दो घनुप दो हाय डेढ़ अंगुल, पांचवें में तीन धनुष दश अंगुल, छठे में तीन धनुष दो हाथ साले प्रकारह प्रेगुल, सातवें में चार धनुष एक हाय तीन अंगुल, पाठवें में चार घनुष तीन हाथ साढ़े ग्यारह अंगुल, नवें में पाँच घनुष एक हाथ बोस अंगुल, दसर्वे में छह धनुष साढ़े चार अंगुल, ग्यारहवें में छह अनुष दो हाथ तेरह अंगुल, बारहवें में सार धनुष साह इक्कीस अंगुल, तेरहवें में सात धनुष तीन हाथ छह अंगुल है। दूसरे नरक के प्रथम पाथड़े में काय पाठ धनुष दो हाथ २२, अंगुल, दूसरे पाथड़े में नौ धनुष २२४, अंगुल, तीसरे में नौ धनुष तीन हाथ, अगुल, चौथे पाथड़े में दश धनुष दो हाथ १४८, अंगुल, पांचवें पायड़े में ग्यारह धनुष एक हाध १०:: अंगुल, छठे में बारह धनुष ७, प्रगुल सातवें में बारह धनुष तीन हाथ ३६, अंगुल, पाठवें में तीन धनुष एक हाथ २३, अंगुल, नवें में चौदह धनुष १६ अंगुल, दसवें में चौदह धनुष तीन हाथ १५६, अंगुल, ग्यारहवें में पन्द्रह धनुष दो हाप बारह अगुल है। तीसरे नरक के प्रथम पाथड़े में काय सत्रह धनुष एक हाथ १०३ अंगुल है, दूसरे पायड़े में उन्नीस धनुष अंगुल, तीसरे पापड़े में बीस धनुष तीन हाथ पाठ मंगुल, चौथे पाथड़े में बाईस धनुष हो हाथ अंगुल, पांचवें पाथड़े में चौबीस धनुष एक हाथ ५३ अंगुल, छठे पाथड़े में छम्बीस धनुष पार मंगुल, सातवे में सत्ताईस धनुष तीन हाथ २, अंगुल, पाठवें में उनतीस धनुष दो हाथ १६ अंगुल और नर्वे में इकतीस धनुष एक हाथ काय है। चौथे नरक के प्रथम पाथड़े में काय पैतीस धनुष दो हाथ २०५ अंगुल है, दूसरे पापड़े में चालीस धनुष १७: अंगुल, तीसरे पाथड़े में चवालीस धनुष दो हाथ १३४ अंगुल, चौये में उनचास धनुष १०९ अंगुल, पांचवें में तिरेपेन धनुष ६: दो हाथ अंगुल, छठे में प्रावन धनुष ३, अंगुल पौर सातवें में बासठ धनुष दो हाथ का काय है। पाँच नरक के प्रथम पापडं में काय पिचहत्तर धनुष, दूसरे में सत्तासी धनुष दो हाय, तीसरे में सौ धनुष, चौथे पाथड़े में १६२ धनुष दो हाथ और पांचवें पायड़े में १२५ धनुष काय है। छठे नरक के प्रथम पाथड़े में एक सौ छयासठ धनुष दो हाथ सोलह अंगुल काय है, दूसरे पायड़े में दो सौ माठ धनुष एक हाथ आठ अंगुल और तीसरे में पढ़ाई सौ धनुष है। सातवें नरक में एक ही पाथड़ा है इसमें पांच सौ धनुष ही काय है । नरकों का विविध प्रकार वर्णननरक बिलों का परस्पर दीवाल अन्तराज जघन्य संख्यात योजन और उत्कृष्ट प्रसंख्यात योजन है उनकी छतों में उष्ट्र मुखाकार वे स्थान हैं जहाँ से नारकी अंतर्मुहर्त में जन्म घर के अधोमुख हो नरक में गिरते हैं। उन स्थानों की चौड़ाई एक कोश, दो कोश, तीन कोश से एक योजन, दो योजन और तीन योजन है और ऊँचाई पंचगुणी है। नरक में मारकियों को विभंगावधि ज्ञान, प्रथम नरक में बार कोश है और नीचे-नीचे माधे-साधे कोश न्यून अर्थात् कम होता चला गया है । यथा-दूसरे में साढ़े तीम कोश, तीसरे में तीन कोश, चौथे में ढाई कोश, पांचवें में दो कोया, छरों में उदकोश और सातवें में एक कोश है । सातों नरकों से निकला हुमा जीव कर्मभूमि में मनुष्य या सनी तिर्यच ही हो सकता है। स्थावर, विकलत्रय, प्रसैनी पंचेन्द्रीय वा देव, नारकी नहीं हो सकता। किसी भी नरक से निकला जीव नारायण,
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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