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________________ णमोकार ग्रंथ २५१ में तीन सौ चीबोस, दसवें पापड़े में तीन सौ सोलह, ग्यारहवें पाथ में तीन सौ प्राठ, बारहवें पायड़ में तीन सौ तेरहवें पायड़ में दो सौ बाण हैं । 1 ऐसे सर्वप्रथम नरक के पाथड़े में चार हजार चारसो चौबीस श्रेणीवद्ध बिल हैं। दूसरे नरक के प्रथम पाथड़ में दो सौ चौरासी, दूसरे पाथड़े में दो सौ छिहत्तर, तीसरे पाथड़ में दो सौ अड़सठ चौथे पाथड़े में दो सौ साठ पाँचवें पाथड़ में दो सौ बावन, छठें पाथड़ में दो सौ चवालीस, सातवें पाथड़े में दो सौ छत्तीस आठ पाथड़े में दो सौ अठाईन, नवें पाथड़े में दो सौ बीस दसवें पायड़ में दो सौ बारह. ग्यारहवें पापड़ में दो सौ चार ऐसे दूसरे नरक में सर्वश्रेणी वृद्ध बिल दो हजार छह सौ चौरासी है। तीसरे नरक के प्रथम पाथड़ में सर्व बिल एक सौ छियानवें, दूसरे पाथड़े में एक सौ मठ्ठासी, तीसरे पाथड़े में एक सौ प्रस्सी, चौथे पाथड़े में एक सौ बहत्तर पांचव पाथड़ में एक सौ चौसठ, छठे पाथड़े में एक सौ छप्पन, सातवें पाथड़े में एक सौ अड़तालीस, आठवें पाथड़े में एक सौ चालीस, नवे पाथड़े में एक सोबतीस - ऐसे तीसरे नरक में सर्व श्रेणीवद्ध बिल एक हजार चार सौ छिहत्तर हुए । चौथे नरक के प्रथम पाथड़े में सर्व श्रेणी वद्ध बिल एक सौ चौबीस, दूसरे पाथड़ एक सौ सोलह तीसरे पाथड़े में एक सौ ग्राठ, चौथे पापड़ में सी, पाँचवें पाथड़ में बाणवें, छठे पायड़ में चौरासी और सातवें पाथड़े में छिहत्तर बिल हैं ऐसे चौथे नरक में सर्व श्रेणी वद्ध सात सौ बिल हैं। पांचवें नरक के प्रथम पापड़े में सर्वश्रेणीबद्ध बिल अड़सठ हैं, दूसरे पाथड़े में साठ, तीसरे बाथड़े में बावन, चौथे पाथड़े में बवालीस और पांचवें में छत्तीस हैं श्रतः पांचवें नरक में सर्वश्रेणीवद्ध बिल २६० हैं । छठे नरक के प्रथम पाथड़े में सर्वश्रेणीबद्ध बिल अठ्ठाइस दूसरे पाथड़े में बीस औौर तीसरे पाथड़े में बारह हैं। छठें नरक में सर्वश्रेणीबद्ध बिल साठ हैं। सातवें नरक में पायड़ा एक ही हैं और बिल श्रेणीषद्ध, चारों दिशाओं में तो चार हैं परन्तु विदिशाओं में नहीं है। इससे सातवें नरक में सर्वश्रेणीवद्ध बिल चार ही हैं। सातों नरक के सर्वश्रेणीवद्ध बिल नौ हजार छह सौ चार जानने चाहिए । इति बिल संख्या । मागे सातों नरकों के सर्व बिलों का संक्षेप में विवरण लिखते हैं। प्रथम नरक से चौथे नरक तक के सर्व बिल और पांचवें नरक के तीन चौथाई बिल महाउष्ण (गर्म ) हैं। पांचवें नरक के एक चौथाई बिल और छठें सातवें नरकों के सर्वं विल महाशीत (महा ठंडे ) है। प्रथम नरक में तेरह बिल इन्द्रक, चार हजार चार सौ बीस बिल श्रेणीबद्ध और उनतीस लाख पिन्यानवें हजार पांच सौ सड़सठ विल प्रकीर्णक (पंक्ति रहित जहाँ-तहाँ फैले हुए) हैं । इद्रक बिल सब संख्यात योजन विस्तार के हैं। श्रेणीवद्ध सब प्रसंख्यात योजन विस्तार के हैं और प्रकीर्णक संख्यान श्रसंख्यात योजन विस्तार के हैं। पाँच लाख निन्यानवें हजार नौ सौ सत्तासी प्रकीर्णक और तेरह इंद्रक ये छह लाख संख्यात योजन विस्तार के और प्रकीर्णक तेईस लाख पिच्याणवें हजार पाँच सौ अस्सी तथा श्रेणीबद्ध चार हजार चार सौ बीस ये चौबीस लाख बिल असंख्यात योजन के विस्तार के हैं । सर्व तीस लाख बिल है । दूसरे नरक में ग्यारह बिल इन्द्रक, दो हजार छह सौ चौरासी बिल श्रेणी वद्ध और चौबीस लाख सताणवें हजार तीन सो पाँच बिल प्रकीर्णक हैं उनमें से ग्यारह इन्द्रक और चार लाख निन्यानवें
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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