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________________ २४ गमोकार बम अर्थात–जो जीव हिंसा के कारण नौकरी, खेती, व्यापार प्रादि के प्रारम्भ से विरक्त होता है वह मारम्भ त्याग प्रतिमा का धारी है। भावार्थ-ब्रह्मचर्य प्रतिमा धारी जब हिसा से प्रति भयभीत होकर प्रारम्भ (जिन क्रियामों में षट्काय के जीवों की हिंसा हो वह प्रारम्भ है) को परिणामों में विकलता उत्पन्न करने वाला जानकर हिंसा के कारण भूत गृह सम्बन्धी षट्कर्म व कृषि, वाणिज्य आदि प्रारम्भ मन, वचन, काय से त्याग कर पेता है तब उसे प्रारम्भ संशक प्रष्टम प्रतिमा का पारी कहते हैं। अथ परिप्रह विरति नाम नवमी प्रतिमा का स्वरूप मार्या छन्द पाहा वशषवस्तुष, ममस्वमुत्सृज्यनिर्ममत्वरतः । स्वस्थः संतोषपरः, परिचिसपरिग्रहानिरतः।। अर्थ-जो वाह्य के दश परिग्रहों में ममता को छोड़कर निर्ममत्व होता हुमा माया प्रादि रहित स्थिर पौर सन्तोष वृत्ति धारण करने में तत्पर है वह परिचित परिग्रह से विरक्त है। भावार्थ--जो प्रारम्भ त्यागी मात्महितेच्छुक षामिक श्रावक राग षादि प्राभ्यन्तरिक परिग्रहों की मंदतापूर्वक धन-धान्य मादि दश प्रकार के परिग्रह से ममत्व त्यागे प्रतिप्रयोजनीय शीतोष्ण बाधा दूर करने निमित्त वस्त्र, जल पात्र व भोजन पात्र मादि तुम्छ परिग्रह रखकर पोष सबसे ममत्व त्याग गृहास्थाश्रम का भार पुत्र, भाई, भतीजे प्रादि को सौंपकर क्षमा भावपूर्वक धर्म साधन की प्रामा लेकर किंचित काल पर्यन्त गृह में ही निवासकर धर्म सेवन करता है उसे परिग्रह त्याग संज्ञक नवमी प्रतिमा का धारी कहते हैं । प्रय प्रमुमति त्याग प्रतिमा स्वरूप वर्णनम् : पार्या छन्द - प्रमुमतिरारम्मेवा, परिग्रहे हिफे कर्मपा। मास्ति बलु तस्य समधीरनुमति विरतः समन्तव्यः ।। मर्प-जिसकी प्रारम्भ तथा परिग्रह में इस लोक सम्बन्धी कार्यों में मनुमति नहीं है वह समान बुद्धि बाला निश्चय करके अनुमति त्याग प्रतिमा का पारी मानने योग्य है। भावार्थ-जो परिग्रह त्यागी श्रावक सांसारिक मावध कर्म विवाह मादि यथा मसि, मसि, कृषि, बाणिज्य प्रादि षट् प्राजीवी को मौर चूला, चक्की मादि पंचसून सम्बन्धी प्रारम्भ क्रियामों के करने की मागा, सम्मति नहीं देता, अनुमोदना नहीं करता उसे समान बुद्धि वाला अनुमति त्याग प्रतिमा का धारी कहते हैं । वह उदासीनता पूर्वक कुटुम्बी जनों से पृपक एकान्त निज स्थान चैत्यालय, मठ, मण्डप तथा धर्मशाला में निवास कर धर्म सेवन करता हुमा कुटुम्बी अथवा अन्य किसी सद् गहस्य के बुला ले जाने पर उनके यहां भोजन कर पाता है परन्तु पहले से किसी का निमन्त्रण (न्योता नहीं मानता और अपने मन्त राय कर्म के क्षयोपशम के पनुसार सरस, बिरस, खट्टा नमकीन, मीठा पादि जैसा भोजन प्राप्त हो उससे उबर पोषण कर संतुष्ट रहता है। इस प्रकार के धर्म सेवन करने वाले गृहस्प को दशमी प्रतिमा वाला अनुमति त्यागी कहते हैं।
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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