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________________ णमोकार ग्रंथ २०३ आ रहे हो ? उत्तर में व्यापारियों ने कहा - 'हम लोग द्वारका गये थे ।' जरासिंध ने फिर पूछा- 'द्वारिका कहां है ? उसका स्वामी कौन है ? उसका किस कुल में जन्म हुआ है ? क्या नाम है ? कितनी सेना और कितना बल है ? व्यापारियों ने जैसा सुना या वंसा सब वृत्तांत कह सुनाया । सुनते ही जरासिंध कोधाग्नि से भड़क उठा और कहने लगा- 'पापी यादव पृथ्वी पर अभी तक जीते हैं । ग्रस्तु मैं उनको भी यमपुर पहुँचाऊंगा।' जरासिंध ने उसी समय अपने मंत्रियों से परामर्श कर यादवों को ग्राज्ञानुवर्ती होने के लिए अपने बुद्धिशेखर नाम के दूत को उनके पास भेजा। जब उन्होंने अधीनता को स्वीकार नहीं किया तब अपनी fage सेना को लेकर युद्ध के लिए चल पड़ा। उधर कृष्ण ने जब सुना कि जरासिंध सैन्य-संग्राम के लिए सुरक्षेष में प्रयुक्त है। तब वे अपनी सेना लेकर रणभूमि में या पहुंचे और दोनों सेनाओं में बड़ा भारी युद्ध हुआ । अंत में जरासिंध और श्रीकृष्ण को मुठभेड़ हो गयी । जरासिंध ने जब शत्रु को दुर्जेय समझा तो star होकर श्रीकृष्ण को मस्तक शून्य करने के लिए चक्र चलाया तो वह चक्र श्रीकृष्ण को तीन प्रद क्षिणा देकर उनके हाथ में श्रा गया। फिर श्रीकृष्ण ने उसी चक्र को जरासिंध पर चलाया । चक्र ने जरासिंध का मस्तक छेद दिया और फिर श्रीकृष्ण के हाथ में आ गया। जरासिंध के मरते ही उसकी सेना भी इधर उधर भाग गयी और सब जगह श्रीकृष्ण की श्राज्ञा का विस्तार हुआ। श्रीकृष्ण जरासिंध के पुत्र को राज्य देकर अपने स्थान पर वापस आ गये ! जिस समय का यह कथन है उस समय यादवों को संख्या छप्पन करोड़ थी। वे संसार भर में प्रसिद्ध हो गये थे । श्रथानंतर कुछ समय पश्चात् भगवान् नेमिनाथ का विवाह जूनागढ़ के राजा उग्रसेन की राजमती नाम का पुत्री के साथ होना निश्चित हुआ । थोड़े ही दिनों में नेमिकुमार की बारात जूनागढ़ आ पहुँची । भगवान् तोरण के पास आए थे कि इतने में स्वामी ने पशुओंों के हृदय द्रावक चिल्लाने का स्वर सुना। उन्होंने अपने सारथी से पूछा ये पशु क्यों किलकार रहे हैं प्रौद निरपराध पशु क्यों बाँध रखे हैं । तब उत्तर में सारथी ने कहा--'महाराज आपकी बरात में जो मांसाहारी राजा ग्राए हैं उनके भोजन के लिए इनको वध करने के निमित्त एकत्रित कर रखा है ।' r 1 यह सुनते ही नेमकुमार के हृदय पर बड़ी चोट लगी और उसी समय अपने रथ को लौटा दिया और ये विवाह का सारा शृंगार तजकर रथ से उतर गिरनार पर्वत पर जा चढ़े और जिनदीक्षा ले ली। उग्र तपश्चरण कर छप्पन दिन के पश्चात् शुक्ल ध्यानाग्नि द्वारा चातिया कर्मों का नाश करके भगवान् केवलज्ञानी हो गये । केवलज्ञान के होते ही इन्द्र ने ग्राकर गिरनार पर्वत पर बारह सभायों से सुसज्जित समवशरण की रचना की। भगवान् को केवलज्ञान होने का समाचार सुनकर द्वारकापुरी से भी श्रीकृष्ण तथा द्वारिका के लोग भगवान् के दर्शन करने को आये और उनके साथ बहुतसी स्त्रियां भी श्राव और भगवान् का उपदेश सुनकर राजमती यादि अनेक स्त्रियों ने प्रायिकाओं के व्रतों की दीक्षा ले ली। बहुत से भव्यों ने उसी समय मुनिव्रत ग्रहण कर लिए। बहुतों ने ग्रणुव्रत धारण किये । कितनों ने केवल सम्यक्त्व ग्रहण किया। उस समय भगवान से देवकी ने तथा श्रीकृष्ण की स्त्रियों ने अपने-अपने अभीष्ट प्रश्न पूछे । भगवान् ने सय का यथार्थ उत्तर दिया। इसके पश्चात् बलदेव ने कुछ भविष्यवार्ता जानने की प्राकांक्षा से भगवान् से पूछा कि हे भगवान् ! जो संसार में जन्म लेते हैं उनका मरण अवश्य
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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