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णमोकार ग्रंथ
रसोइया यह सुनकर बड़ी चिता में पड़ गया। वह सोचने लगा कि मैं जीवघात करता हूं तो राजाज्ञा के प्रतिकूल होने से राजा नियम करके मुझे प्राण दण्ड देगा और यदि राजकुमार को मांस लाकर देने से इन्कार करता हूं तो मेरा उद्यम जाता है राजकुमार मुझ पर असंतुष्ट हो जाएंगे। ऐसा विचार कर रसोइया नगर के बाहर गया और वहां किसी मरे हुए बालक को गड़ा देख उसे निकाल कर वस्त्र में लपेट कर गुप्त रीति से ले प्राया और मांस लोलुपी राजकुमार के लिए उसे ही बनाकर रख दिया । जब राजकुमार भोजन के लिए आया तो उस रसोइये ने प्रथम षड्स व्यंजन परोसकर पीछे वह मांस भी परोस दिया । प्राज के मांस को नवीन स्वाद बाला देखकर राजकुमार ने रसोइये से। पूछा ये किसका मांस है ? मैंने श्रद्य पर्यन्त कभी ऐसा मांस नहीं खाया था । '
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रसोइये ने कहा - कुमार ! यह मांस मयूर का है।' राजकुमार ने फिर कहा- क्या मैंने कभी मयूर का मांस नहीं खाया है ? वह तो ऐसा स्वादिष्ट नहीं होता इसमें और मयूर के मांस में तो बहुत भेद है। मैं तेरे लिए क्षमा प्रदान करता हूँ। ठीक-ठीक से कह ये स्वादिष्ट मांस किसका है ?'
तब रसोइये ने कहा - कुमार ! मैंने पहले आपके भय से यथार्थ नहीं कहा था, परन्तु आप क्षमा प्रदान कर चुके हैं अतः मैं सत्य कहता हूं। यह मांस मनुष्य का है।' सुनकर राजकुमार बोला'देख ! ब्राज से मेरे संतोषार्थ प्रतिदिन ऐसा ही स्वादिष्ट मांस लाकर खिलाया कर। इसके लिए जितने द्रव्य की आवश्यकता हो, उतना में दे दिया करूँगा ।"
रसोइये ने सुनकर विचारा कि मैं प्रतिदिन मनुष्य का मांस कैसे ला सकूंगा ? इसकी उसे बड़ी ही चिन्ता हुई। वह मनुष्य का मांस प्राप्त करने का उपाय सोचने लगा । ज्ञाने में कुबुद्धि ने उसका साथ दिया। मांस के उपलब्ध होने का कोई और उपाय न देखकर संध्या के समय कुछ अन्धेरा हो जाने पर जहां बहुत से बालक खेला करते थे, वहाँ लड्डू प्रादि मिष्ठान्न बांटने लगा बेचारे बालक इस लोभ के वश से उसके पास नित्य प्रति आने लगे। सच कहा है कि मोहों में स्वाद का मोह सबसे बलवान है । इस प्रकार जब बालक रसोइये से हिल गये, तब वह जो बालक पीछे रहता, उसे ही अवसर पाकर पकड़ कर ले जाता और उसके प्राण हर कर गुप्त रीति से वस्त्र में छिपाकर घर ले प्राता और राजकुमार को उसके मांस से प्रसन्न करता । उसे ऐसा करते बहुत समय व्यतीत हो गया ।
इसी समय राजा भूपाल सांसारिक विषय भोगों से विरक्त होकर संसार का सब माया जाल तोड़कर जैनेंद्री दीक्षा ले मुनि हो गये और राज्याधिकार बकु को मिल गया । यह स्वच्छन्द होकर राज्य करने लगा । इसी प्रकार बहुत समय व्यतीत होने पर बालकों को नित्य प्रति कमी होने से प्रजा के मनुष्य बहुत घबराये । सबने मिलकर यह विचारा कि यह बात क्या है ? इस विषय का पता लगाना चाहिए कि ये बच्चे जाते कहां हैं? बहुत से मनुष्य इस विषय का गुप्त-रीति से अन्वेषण करने लगे ।
एक दिन रसोइया पूर्ववत् बालकों को मिष्ठान देकर ज्योंहि उनमें से एक बालक को पकड़ कर ले जाने लगा, त्योंही गुप्तचरों ने भाग कर उसे पकड़ लिया। पकड़ते ही रसोइये ने अधमरे बच्चे को नीचे डाल दिया। बालक को देखते ही लोगों का क्रोध उमड़ आया। उन्होंने उसे खूब भारा, और जब उससे पूछा गया, तब उसने यथार्थं वृत्तांत कह दिया। राजा की इस अनीति को देखकर सब लोग विस्मित होकर कहने लगे
अब तो माके ग्राम में, बसवा नाहिं लगार । येत महावुख प्रजा को, भक्षत बालक मार ॥१॥
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