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आचार्यरस्न १०१ बी वेशभूषण जी महाराज
भाशीर्वादात्मक
दो शब्द 'णमोकार ग्रन्थ' पाठकों को देते हुए परम बानन्द का अनुभव हो रहा है। हम कुछ समय पूर्व वंदवाड़ा दिल्ली के दिगम्बर जैन मन्दिर में प्रधान के लिये गये थे। जिस मन्दिर में हम जात हैं, उसक शास्त्र-भण्डार का अवलोकन करने की हमारी प्रवृत्ति रहती है। अतः इस मन्दिर के शास्त्र-भण्डार का भी हमने अवलोकन किया। अवलोकन करते हुए हमें प्रस्तुत सचित्र 'णमोकार ग्रन्य' प्राप्त हो गया। इसके रचयिता खण्डेलवाल जातीय लक्ष्मीचन्द्र नाड़ा दिल्ली वासी हैं । यह ग्रन्थ इंढारी और बरी बोली दोनों मिशित भाषाओं में लिखा गया है। यह अन्य अब तक अप्रकाशित था। हमें प्रन्थ देखकर बहुत उपयोगी लगा । इसी प्रकार सेठ के कूचे के दिगम्बर जैन मन्दिर के शास्त्र-मण्डार का अवमोकम करते हए इस ग्रन्थ की एक और प्रति प्राप्त हो गई। हमने दोनों प्रतियों का मिलान करके भाषा का परिमार्जन किया, जो पाठकों के समक्ष है हस्तलिखित प्रति में जो चित्र थे, वे भी ज्यों के त्यों इस प्रन्य में दे दिये गये हैं । इससे उनकी कला की मौलिकसा अक्षुण रही है।
इस ग्रन्य में णमोकार मन्त्र का महात्म्य और उससे सम्बन्धित कमायें दी गई हैं। इसके अतिरिक्त बन धर्म के सिमान्तों और रत्नत्रय आदि का विवेचन किया गया है। हमें पूर्ण विश्वास है, कि इस ग्रम्य के पठन-पाठन और मनन-चिन्तन से सभी पाठकों को लाभ होगा और वे अन धर्म के सिवान्तों का भली प्रकार समाह सकेंगे। इस प्रन्य के प्रकाशन में हमारी भावना यही रही है।
सितम्बर-1977