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नमोकार अंक
है । सांसारिक विषयों की इच्छा रहित होकर प्रात्मा को तपाना अर्थात् कर्म मल रहित निर्मल करना तप है । अन्तरंग और बाह्य के भेद से तप वो प्रकार का है। बाह्य तप के भेद
अनशन, अवमौदर्य, वत परिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन, और काय क्लेश छ; प्रकार के बाह्य तप है। अनशन तप
__ ख्याति लाभ की इच्छारहित गर सिद्धि के प्रभाव को पास तान स्वाध्याय की सिद्धि के अर्थ प्रमाद प्रभाव के लिए एक दिन की मर्यादा रूप चार प्रकार के भोजन का त्याग करना अनशन तप है। अवमौदयं तप
मिष्ट भोजन के लोभ रहित निद्रा के प्रभाव तथा संयम की सिद्धि के अर्थ व ध्यान की निश्चलतादि के लिए प्रल्प भोजन करना अवमौदर्य तप है । व्रत परिसंख्यान तप
प्राहार लेने को अटपटी प्रतिज्ञा करके चित्त के संकल्प को रोकना-जैसे प्राज वन में मिलेगा तो लेवेंगे या दो तीन घर से अधिक में न जावेंगे, ऐसी प्रतिज्ञा करके आहार के लिए गमन करना और संकल्प के अनुसार भोजन प्राप्त न होने पर वापिस बन में आकर उपवास धारण कर लेना व्रत परिसंख्यान तप है। रस परित्याग तप
संयम की सिद्धि और लोलुपता के त्याग के निमित्त घृत, तेल आदि षट् रसों में से एक दो प्रादि का त्याग करना रस परित्याग तप है। विविक्तशय्यासन तप----
जीवों की रक्षार्थ प्रासुक क्षेत्र में पर्वत, गुफा, मठ, वन खंड प्रादि एकान्त स्थान में ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, ध्यान की निश्चलता के लिए शयन व प्रासन करना विविक्तशय्यासन तप है। कायक्लेश तप
शरीर के सुखिया स्वभाव को मिटाने के लिए, कष्ट सहन करने के अभ्यास के लिए साम्यभावपूर्वक, शक्ति के अनुसार ग्रीष्म में पर्वत पर, वर्षा में वृक्ष के नीचे, शीतकाल में जलाशय के तट पर ध्यान धरना व कठिन-कठिन प्रासन लगाना कायक्लेश तप है।
यह छः प्रकार का बाह्य तप है, जो प्रगट रूप में देखने में प्राता है। अब अभ्यंतर तपों का वर्णन किया जाता है। अभ्यन्तर तप के भेद
पायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान अभ्यन्तर तप के छ: भेद हैं। प्रायश्चित तप
अपने तप, प्रत में लगे हुए दोषों को उनके शुद्ध होने के निमित्त गुरु से स्पष्ट प्रगट कर देना कि
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