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णमोकार थ
मेंदुबिचार भी नहीं करना, निन्दा तिरस्कार न स्वयं करना न औरों से कराना सुख दुख क्लेश को पूर्व पूर्वोपार्जित कर्मों के फल जानकर समभावों से सहन करना उत्तम क्षमा है ।
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उत्तम मार्दव धर्म
अपने रूप, ज्ञान, बल, ऐश्वर्य आदि का अभिमान नहीं करना, विद्वत्ता का अभिमान नहीं करना, धर्मात्मा, व्रती व विद्वानों को देख कर श्रथवा गुरुजनों को देखकर खड़ा होना तथा नमस्कार करना, उच्च ग्रासन देना, आदर सत्कार करना, उनके सामने खड़ा होकर नहीं बोलना, मन, वचन काय से उनकी आज्ञा का पालन करना, देव, गुरु, शास्त्र का चित्त से प्रदर, उनके गुरुओं का चितवन करना उत्तम मार्दव धर्म है
उत्तम आर्जव धर्म
मन, वचन, काय की कुटिलता को त्याग कर परिणाम सरल नही करना, जैसा मन में हो वैसा ही वचन के द्वारा प्रकाश में लाना तदनुसार ही देह से करना उत्तम आर्जव है ।
उत्तम सत्य धर्म
छल कपट रहित बचन बोलना, सर्व हितकारी प्रामाणिक मिष्ट कोमल वचन बोलना, धर्म की हानि या कलंक लगाने वाला प्राणियों को संक्लेश दुःख पहुँचाने वाला वचन ेन कहना उत्तम सत्य धर्म है ।
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उत्तम शौच धर्म
अनीति से दूसरों के धन, सम्पसि, गृह प्रादि पदार्थों को श्रभाव और सुकृत की प्राप्ति में संतोष कर मलिन श्राचरण का लोभादिक कषायों को दूर कर सदा निर्मल रखना उत्तम शौच धर्म है ।
रखना अर्थात् कभी छल कपट और जो कुछ प्रकाश में लाया है।
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ग्रहण करने की ती अभिलाषा का त्याग करना तथा अंतरंग श्रात्मा से
उत्तम संयम धर्म
इन्द्रियों को विषयों से रोकना संयम है। उत्तम संयम धर्म के दो भेद हैं। पहला प्राणि संयम दूसरा इन्द्रिय संयम ।
बाह्य पंचेन्द्रियों और मन को विषय सेवन से रोकना, दुराचारों से बचना इन्द्रिय संयम है । अन्तरंग से छह काय के जीवों की रक्षा करना प्राणि संयम है ।
उत्तम तप धर्म
सांसारिक विषयाभिलाषा रहित होकर मनादि कर्म बन्ध से सचिवानन्द स्वरूप निर्मल बात्मा को अनशनादि बारह प्रकार के तप से तपाकर कर्म मल रहित करना उसम तप है।
उत्तम त्याग धर्म
निश्चय त्याग तो अपनी म्रात्मा से अनादिकाल से लगे हुए राग, द्वेष, मोहादि परभावों से जिसके कारण वह सदा भयवान दुखी रहता है, छुटाकर निर्भय कर देना है । व्यवहार में आहार, प्रौषधि शास्त्र और प्रभय, ये चार दान है । व्यवहार में साधु, मुनि प्रादि गुरुजनों को वा सम्यकत्ववान व्रती श्रावक को उनके दर्शन, ज्ञान और चरित्र की वृद्धि के लिए भक्ति भाव से और दुखित, भूखे, अंगहीन रिद्रियों को करुणा भाव से भूख-प्यास में बाहार पानी देना, रोग अवस्था में शुद्ध औषधि देना, विद्याभिलाषियों को शास्त्र दान देना, भयभीत जीवों को अभयदान देना उत्तम त्याग है ।