SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ प णमोकार ग्रंथ मिध्यात्व के ( १ ) एकांत मिध्यात्व ( २ ) विपरीत मिथ्यात्व ( ३ ) संशय मिथ्यात्व ( ४ ) वैनयिक मिथ्यात्व और (५) प्रज्ञानिक मिथ्यात्व ऐसे पाँच भेद हैं। (१) पदार्थों में अनेक धर्म होते हैं उनमें से सबका प्रभाव कर एक ही धर्म को मान केवल उसीका श्रद्धान करना उसे एकांत मिथ्यात्व कहते हैं । (२) सग्रंथ निर्ग्रन्थ हैं, केवली ग्रासाहारी हैं, स्त्री को मोक्ष होता है, इस प्रकार विपरीत रुचि को विपरीत मिथ्यात्व कहते हैं । (३) घने मतों को सुनकर रत्नत्रय मोक्ष मार्ग है या नहीं तथा धर्म, अहिंसा लक्षण है या नहीं इत्यादि संदेह रूप श्रद्धान को संशय मिध्यात्व कहते हैं । ( ४ ) समस्त देव, कुदेव, धर्म, अधर्म, शास्त्र, कुशास्त्र' इन सबको एक-सा समझना या सच्चे तत्वों और झूठे तत्त्वों को एक-सो महत्त्व की दृष्टि से देखना, मानना, वैनियिक मिध्यात्व कहते हैं । (५) देव, कुदेव, धर्म, कुधर्म, शास्त्र, कुशास्त्र, तत्व, कुतत्त्व तथा वक्ता, कुवक्तादि संसार तथा मोक्ष के कारणों में हिताहित की परीक्षा रहित श्रद्धान करना श्रज्ञानिक मिध्यात्व है । काय के जीवों की रक्षा तथा इन्द्रिय और मन की विषयों से प्रवृत्ति के न रोकने को प्रति रत कहते हैं। वह बाहर प्रकार का है 1 स्पर्शंन, रसना, घ्राण. चक्षु और श्रोत्र तथा मन इनको वश में न करना इनके विषयों में सदैव लोलुपी बने रहना तथा पृथ्वी कायिक अपकायिक, तेजकायिक, वायुकाधिक और वनस्पतिकायिक तथा द्वीद्रियादि सकाय वाले जीवों की रक्षा करना सो अविरति है । जो ग्रात्मगुण धातकर क्लेशित करें सो कषाय है। इसके चार भेद हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ, इन चारों में से प्रत्येक के शक्ति की अपेक्षा के तीव्रतर तीव्र, मन्द श्रौर मन्दतर ऐसे चार भेद हैं। ऐसे कषाय के क्रोध, मान, माया, लोभ १६ भेद और हास्य, रति, श्ररति श्रादि नौ कषाय के नवभेद, इस प्रकार सब मिलाकर इसके २५ भेद हैं । चार अनंतानुबन्धी कोष, मान, माया, लोभ ये कषाय अनन्त संसार का कारण मिथ्यात्व तथा सप्तव्यसनादि अन्याय रूप क्रियाओं में प्रवृत्ति कराने वाला और ग्रात्मा स्वरूपाचरण चारित्र का घातक चार प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, यह कषाय आत्मा के देश चारित्र का घातक है अर्थात् श्रावक के व्रत इसके उदय होते हुए रंचमात्र भी नहीं होते, तथापि अनन्तानुबन्धी कषाय के प्रभाव से सम्यत्व होने पर अन्याय रूप विषयों में प्रवृति नहीं होती है। चार प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ ये कषाय आत्मा के सकल चारित्र के घातक हैं अर्थात इसके होते हुए पंच महाव्रत नहीं हैं । यह कषाय भेद हैं । इस कारण क्षयोपशम के अनुसार श्रावक व्रत हो सकते हैं। चार संज्वलन कोष, मान, माया, लोभ यह कषाय, मात्मा के यथाख्यात चारित्र के घातक हैं अर्थात यह कषाय प्रति मन्द होने के कारण संयम के साथ उदय होते हुए भी संयम का घात नहीं करता है केवल इसका उदय यथाख्यात चारित्र का ही घातक है। नौ कषाय के नौ भेद: (१) हास्य - जिसके उदय होने से हँसी उत्पन्न हो । (२) रति-जिसके उदय होने से विषयों में ग्रासक्खता हो । (३) परति-जिसके उदय होने से पदार्थों में मप्रीति उत्पन्न हो । (४) शोक – जिसके उदय होने से वित्त में खेद उत्पन्न हो । (५) भय - जिसके उदय से चित्त में उद्वेग हो ।
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy