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________________ णमोकार ग्रंथ (११) दूरावलोकनऋद्धि-प्रत्येक पदार्थ को दूर से देखना तथा जानना ! (१२) दूरीश्रवणऋद्धि-सात प्रकार के स्वर और पाँच प्रकार की वादि ध्वनि को दूर से देखना तथा जानना। सप्तस्थर नाम- (१) ऋषभ (मनुष्य शब्द) (२) रिषाद (मेघ गर्जना) (३) गन्धार (बकरी की बोली) (४) खरज (बिलाई को बोलो) (५) मध्यम (उपरोक्त चारों बोली एक साथ) (३) धैवत (हामी नी रिंभार) १५) पना (कोयल की बोली) ये सात स्वर हैं। पंच वादित्र- (१) चर्म (मृदंग प्रादि) (२) फूक (बांसुरी प्रादि) (३) तांततार (वीणा यादि) (४) ताल (मंजीरा आदि) (५) जल लहर (पानी का शब्द) ये पांच प्रकार वादित्र हैं। (१३) दस पूर्वऋद्धि-जिससे दस पूर्व का ज्ञान होवे । (१४) चौदह पूर्वऋद्धि-जिससे चौदह पूर्व का ज्ञान होवे । (१५) इन्द्रियदमनऋद्धि-जिसके द्वारा पांच इन्द्रियों का दमन कर तपश्चरण करे। (१६) बाद बुद्धि ऋद्धि-दूसरे को वाद में जीतना । (१७) प्रज्ञाऋद्धि-तत्वार्य अथवा पदार्थों के भेद को बिना शास्त्र को पढ़े स्वयं जान लेना। ( निमित्तकद्धिऋद्धि---इसके अाठ भेद हैं- पश-पक्षियों की भाषा सुनकर उस भाषा से शुभाशुभ फल को जानना, सो स्वर भेद है ॥१॥ ग्रह नक्षत्रादिक को देखकर शुभाशुभ को जानना सो अन्तरिक्ष है ॥२॥ पृथ्वी कम्पनादि लक्षणों को जानकर शुभाशुभ फल को बताना अंगभूत है ।।३॥ वैद्यक सामुद्रिक मादि से मनुष्य तथा चौपायों का शुभाशुभ जानना सो मंड है ।।४॥ वस्त्र, शस्त्र, पशु, पक्षी और अग्नि आदि से शुभाशुभ जानना चिह्न है ।।५।। तिल, मस्सा, लहसन आदि प्रग के चिन्हों को देखकर उनके शुभाशुभ को जानना सो व्यंजन है ॥६॥ श्री वत्स, शंख, चक्रादि चिह्न को देखकर उनके शुभाशुभ को जानना सो लक्षण है ॥७॥ स्वप्न से शुभाशुभ जानना सो स्वप्न चिह्न है ।1।' ये अठारह भेद बुद्धि ऋद्धि के हैं। दूसरी औषधऋद्धि पाठ प्रकार की हैं। (१) विष्टा ऋद्धि-मुनि की विष्ठा रोगी के शरीर से लग जाए तो सर्व रोगों का नाश होना। (२) मल ऋद्धि - मुनि का कान नाक आदि का मल रोगी के लग जाए तो सर्व रोगों का नाश होना। (३) आम्र ऋद्धि-रोगी या दरिद्वी को मुनि महाराज के शरीर का स्पर्श हो जाए तो रोग वा दरिद्रता जाती रहे ! (४) उजज्वल ऋद्धि- मुनि के शरीर का पसेव दरिद्री अथवा रोगी के लग जाए तो दरिद्रता पौर रोग जाता रहे। (५) घुल्लक ऋद्धि-दरिद्री वा रोगी मनुष्य के मुनि का मूत्र, कफ थूक, लग जावे तो दरिव्रता व रोग जाता रहे। (६) सौषधि ऋद्धि-मुनि के शरीर का स्पर्श कर जो पवन आवे, उसके लगते ही रोगी का सर्व रोग नाश होवे।
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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