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ग्रन्धकार
[ महाकवि धनञ्जय] नाममाला के कर्ता महाकवि धनञ्जय है। इन्होंने स्वयं अपने किसी ग्रन्थ में अपने समय आदि के बारे में निर्देश नहीं किया है। ये ग्रहस्थ थे। द्विसन्धानकाव्य के अन्तिम श्लोक की व्याख्या में उसके टीकाकार ने धनञ्जय के पिता का मास धसुदेव, माता का नाम श्रीदेवी और गा का नाम वशरथ सूचित किया है। इनकी ख्याति विसन्धानकमि' के नाम से थी। नाममाला के अन्त में पाया जानेवाला यह इलोक स्वयं इसका साक्षी है :--
"प्रमाणमकलङ्कस्य पूज्यपादस्य लक्षणम्।
द्विसन्धानकवेः कान्यं रत्नत्रयमपदिंचमम्॥" अर्थात्-अफलादेब का प्रमाण शास्त्र, पूज्यपार का लक्षण-व्याकरण शास्त्र और द्विसन्धानकवि का द्विसन्धानकाय्य ये तीनों अपूर्व रत्नत्रय है। यह इलोक नाममाला के भाष्यकार अमरकीति के सामने था, उनने इसकी व्याख्या भी की है। इसमें इनका उप-नाम द्विसन्धानकवि' सूचित किया गया है। टीक भी है। क्योंकि महाकवि धनञ्जय की सर्वश्रेष्ठ चमत्कारिणी कृति द्विसन्धानकाय हो है। पादिराज सूरि ने पार्श्वनाथ चरित के प्रारंभ में द्विसन्धान काव्य की प्रशंसा करते हुए लिखा है :
"अनेक दसन्धानाः खनन्तो हृदये मुहुः ।
बाणानन्तायोसा मागेर लिया; कपम् ।' अर्थात् धनञ्जय के द्वारा कहे गए अनेक सन्धान-अर्थभेद बाले और हृदयस्पर्शी वचन कानों को ही प्रिय कैसे लगेंगे जैसे कि अर्जुन के द्वारा छोड़े जाने वाले अक लक्ष्यों के भेदक मर्मभेवी वाण कर्ण को प्रिय नहीं लगते?
द्विसन्धान काट्य अपने समय में पर्याप्त प्रसिद्धि प्राप्त कर का था। इसका उल्लेख धारापोश भोजराम के समकालीन आचार्य प्रभाचन्द्र ने अपने प्रमेयकमलमार्तण्ड (पृ.० ४०२) में किया है।
जल्हण (१२वीं सदी) विरचित सूक्ति मुसावली में राजशेखर के नाम से पनञ्जय की प्रझांसा में निम्नलिखित पर
"द्विसन्धाने निपुणतां स तां च धनञ्जयः 1
यया जातं फलं तस्य सतां च धनञ्जयः ।।' इस लोक में राजशेखर ने धनञ्जय के हिसन्धानकाय का मनोमांधकर सर्राण से उल्लेख किया है।
धनञ्जय कधि के द्वारा एक विषापहार स्तोत्र भी बनाया गया है। यह अपने प्रसाद ओज और गाम्भीर्य के लिए प्रसिद्ध है। कहते हैं कि यह स्तोत्र कवि ने अपने सपंदष्ट पुत्र का विष उतारने के लिए बनाया था। समयविचार
इनके समय निर्णय के लिए निम्नलिखित प्रमाण हैं :-- (१) प्रमेयकमलमार्तण्ड आदि के रचयिता प्रभाचन्द्र (१० ११षों सदी) ने इनके द्विसन्धान
काव्य का उल्लेख किया है अतः ये ११वों सदी के बाद के विद्वान् तो नहीं हैं।