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नाममाला
ने प्राक्कथम का हिन्दी अनुवाद किया है । पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार ने अनेकार्यनिघण्टु और एकाक्षरी कोश की प्रति भेजी। पं० श्रीनिवासजी शास्त्री ने भाष्य को प्रति भेज कर अनुगहीत किया है।
भारतीय ज्ञानपीठ के संस्थापक सेठ शान्तिप्रसाद जी तया अध्यक्षा सौ. रमा रानी जो की संस्कृतिनिष्ठा, उदार वृष्टि, शानानुराग और सौजन्म इस संस्था के जीवन हैं। अपनी स्व. पुण्यश्लोका माता मत्तिदेवी के स्मरणार्थ मूतिदेवी ग्रन्थमाला के संस्कृत विभाग का यह छठवां ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। इस भद्र दम्पत्ति से ऐसे ही अनेक लोकोदयकारी सांस्कृतिक कार्यो को आशा है।
इस संस्था के कर्मनिष्ट मन्त्री श्री अयोध्याप्रसाद जी गोयलीय की कार्यवृष्टि, सत्प्रेरणा और प्रयत्न से इस संस्था का दस रूप में सञ्चालन हो रहा है। मैं इन सब का आभार मानता हूँ।
'भारतीय ज्ञानपीठ काशो,
पौष शुक्ल १५
वीर सं० २४७६ ३३१५०
-~-महेन्द्र कुमार जैन ग्रन्थमाला सम्पादक
प्रकाशन-व्यय
४०.) कागज २० रीम २२४२९/३२ पौण्ड । ५४५॥) कार्यालय व्यवस्था प्रूफ संशोधन आणि ९७५) छपाई पृष्ठ १९६ दर ५०) प्रति फार्म ! ४२६-) सम्पादन २००) जिल्द बधाई
| ५००) भेंट आलोचमा, विज्ञापन आदि ६०) कनर छपाई
७८७।।) कमोशन ४०) कवर कागज
कुल लागत ३९३४१००० प्रति छपी। लागत एक प्रति ३॥
मूल्य ३५॥)