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________________ पद्मपुराल केई सुरम देवगति लही । इक्ष्वाकवंस कुल उत्तम सही ।। माहुबलि के सोमप्रभ भया । महाबल सुवल धर्म घुर किया ।।६।। भुजबल देवमादि अतिबली। इनकी कीरति जग में भली ।। केई मुक्त केई सुर भए । कोटि कर्म ऊंची गति गए ॥१०॥ सोमवंस का क्रिया बषान । नवि वंसी विद्याधर जांनि ।। विद्याधर परबत का भूप । ममी विद्याधर बहुत स्वरूप ।।११॥ ताक रत्नमाली सूत एक । जाने राज काज की टेक ॥ रसनबोयं रतनरथ और । रतनचित्र रथ सुष की ठौर ।।१२॥ समाजच नजसित टिष्ट । नवमल टनाभन जेड ।। सुवजर अरु बञाभृत राय | वनभान वनवाह गुनभाय ।।१३।। वनवाक बच्चसिंघ नरेस । वचाष्ट साधे बहुदेश ।। बरतन भीम बसवान 1 विद्य न्मुष सवकंच बलबान ॥१४॥ बाहस्त दान विद्योत । बिद्य तहढ कांमनी महोत ।। इकनिस पोढे दम्पति संग | सुष सज्या सोभै सुभ रंग ॥१५1 देश राज की महिमा कहैं । राणी का मन सुरिण उमगहैं ।। मोहि दिषावी वे सत्र ठाउ । कैसे डीप परबत भरु गांव ।।१६।। इतनी सुरिष साजिया विमान । दंपति बैठ चले सुष मान ॥ पंचागिर परवत तर हान । संजं सुरति मुनि प्रातम ध्यान ॥१५|| रुक्या विमान न प्रागे चल । विद्याधर मन ज्वाला जलें ।। का कोई मित्र के दुरजन ठांउ । के कोई सिद्ध तपा के भाउ ।।१८।। असा चित वि गहिं कमांन । चारू कूट चलाया बनि ।। दामिन चमवी उजयारा भया । मुनिवर देषि उपद्रव किया ॥१६॥ पापी दिया साधनें दुष । वह अपने मन माने सुष ।।। मुनिवर चित्त में भय न वि धरी । असुभ करम टूटे तिह घरी ।।२011 सह परीसह अपने अंग । उपज्या केवल लहर सुरंत ॥ चविध देव किया जयकार । कंचन मही बनी तिहवार ॥२|| विद्य तदृढ़ बांधिया धनेंद्र । विद्यालई छीन सब संघ ।। मनि बैठा आतम ल्यो लाइ। ते क्यु टुप दिया यहां आई ॥२२।। तब विद्याधर बिनती कर । ऐसे पाप टर ना टरें । साघहै दुख दीया वेकाज । हरत परत षोई सब लाज ॥२३॥ कठिन पाप मैं कियो प्रथाय । अब मैं पाप टरै किह भाय ।1 बिन विद्या किम पहुंचे मेह । चिंता व्यापी गगपति देह ।।२४।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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