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________________ मुमि सभाचंच एवं उनका पसपुराण परजा सुषी वसई ता सर्ण । परदुष मंजन दारिद्र हणं ।। श्री भगवंत धरम समझाय । मोक्ष मारग के भेद बताय ॥४५६।। पुन्य विभूति सकस घिर गई । वांनी जोत एक सम मई ॥ एक मास रहे इह् भांति । ना कटु वानी मां कछु बात ॥४६०।। माघव नबी सौरस परबांन । श्री जिन पहुंचे मुक्ति मिलान ।। देह कपूर समान सब गिरी । विज्दल घात विमकसी करी ।।४६१।। सूरपति प्राय किया केल्यारण : पूजा रवी भगातसो प्रारिंग ।।४६२॥ श्री जिरण धरम प्रगट किया, प्रतिबोधे बहु लोग ।। आप मुक्ति रमणी वरी, तिहाँ सासते भोग ।।४६३।। इति श्री पद्मपुराणे श्रेणिकप्रश्न श्री कृषभ महातम विधानकं संधि ॥१॥ द्वितीय संधि भरत का वैराग्य प्रोपई भरत भूप छह षंड का घनी । राजसभा मोभा अति बनी ।। छत्री राहसश्रो विद्याधर भूप । एते भूमिगोचरी अनूप ॥१॥ मुकट बंध बीस हजार | छपान सहस नारी भरतार ।। दरपन देख धवल सिर केस । मन में कंपा भरत नरेस ।।२।। मंत्री सों पछी जब बात । कंप्या भूप पसीना गात ।। भोग भुगत में बीती प्राव । धरम ध्यान सो घरमा न भाव ।।३।। मोह माया में भया पचेत । जरा दूत कच पाए स्वेत ॥ अब सम्म राज विभूति को त्याग । घरौं चारित्र मन बच वैराग ।।४।। प्रादिलजस को सौप्पा राज | पाप संधारघा प्रातम काज ।। पाले प्रजा भोग भोग । साथै भग्य वनमें नित जोग ||21 भरत का परिवार उपज्या केवल भया निरवांन । सुरपति पनि गवे निजयान ।। मावितणस के सिदजम पूत | बल प्रकुस बल महावस भूत ॥६॥ प्रतिबल अमरत सबद सुभद्र । महेन्द्र महोदर भीम सुरेन्द्र ।। रवितेज प्रभतेज भूपती । परताप भनि प्रति वीर सुभमती ।।७।। सुषिरत उदत और बहुभूप | उनका वरनों कहा स्वरूप । केइक तप करि भये केवली । गए मुक्ति पूजी मन रली ।।८।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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