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________________ मुनि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण सुदर्शन जाके बोधि । बज्रमई है तार्क नींच ॥ सो बनाई बहुत विसतार | कहां कहां बहु रत्न अपार ।। १६८ ।। ऊंचा सिखर प्रकास लागि अंतर एक बाल समाग || जोजन महा इक लाख प्रमांगा । केवल बांणी सुध्यां बष रण ।। १६६ ॥ पंचमेरू अढांई द्वीप | दृगुणे दगुणे कहं समीप ।। और कहे फुलावल घटमेर । एक एक पंड ताके घेर १२०० विजया अनेक || छह पंड भये एक तई एक दीर्घ ती लघु विजयाद्ध अनेक जु और उदह नदी निकसी गिर फोर ॥२३१॥ श्रठसठ गुफा नही हैं तिहा। इक इक मेर कुलाचल तिहां ॥ अकृत्तम चैत्याला लिहां बने। उनके भेद पुरान भने ||२२|| मत्तरियो पत्र पंचमेरु मांझ । इह त्रिध चित में जानू सांच || भोगभूमि का वन मदा सास्वता इक सो साठ । विनासीक जानू दोय आठ ११२७३॥ सोबर्स मई जानु भोगभूमिं । तामें कल्पवृक्ष रहे भूमि ॥ जब मैं जुगल हुवें उतपन्न । भूगतें सुष जे बंछित मन ।। २०४ ॥ । जैसे स्वर्ग लोक के देव । श्रइसे ही जुगलियां का भेव ॥ तो भी श्रेणिक पूछे कर जोडि किस पुन्य पावें भैसी र २०५ ।। तवं भगवंत कहै समझाय । दान सुपात्र तर फल राइ ॥ मन वच काय दीया जिन दान तांतें रिध है असमान ॥। २०६ ।। 1 ज्यू वट बीज तुच्छ प्रमाण । उपज्यां भया बड़े उन्मान || ताकी छाया शीतल घनी । बहुत विस्तार कहे क्या गुनी ||२०७॥ इा परिवर्ध सुपात्रां दान | चौविह दोज्यो चतुर मुजांन || दर्शन कुपात्र तणां फल एह । विनु विवेक जो कोई देई || २००१ सत्य बीज बाधै जो कोई । एक बालि एकेक ज होई || चौवह कुलकर कुपात्र दान फल है यह तुछ। इह त्रिव समकै चतुविच ॥ २०६ ॥ चौदह कुलकर का व्याख्यान । सुणों गुणी जन सुघड़ सुजांन ॥ प्रथम प्रतिष्ठ १ दूजा सनमित्त २ । बेमंकर ३ तीजा कुल थि । २१० ॥ मंबर ४ सीमंधर ५ कुल कीया । सीमंकर षष्टम ६ कुल भया ।। सप्तम बिमल ७ बहु कुलवंत । श्रष्टमं च कल्पवृक्ष जोति घट गई। वा सुर रयरण षमान गुनवंत ।। २११ ।। प्रगट तब भई ॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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