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आगे बढो किकर चले । गली सकल समराई भले || जिहा तिहां हुंबा छिडकाउ । ताथई बहुत बिराजै ठांउ ।। १८५ ।। देषं झांक झरोखा द्वारि ॥
कोईक श्राइ अटारी नारि ।
नाद बाज बहोत । हृय मय रथ सोभा प्रति होन ।। १८६ ।। सेना साथ राय प्रति घनी । जिसकी सोभा जाय न गिनी || दिन सोभा सोम बहु भांति । सकल लोग श्रावं जिन जात ।। १८ ।। समोस देखियो नरिद । उसरि भूप सुमरियो जिनँद ॥
पृहता राय जाइ समसरन । जीव जंत का पातिक हरन ॥१८८॥
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दई प्रदक्षिणा करि होत । कि पूछी प्रश्न बहोत ॥ भगवान महावीर से रघुवंश कथा को जानने की इच्छा प्रकट करना
स्वामी कहो कथा रघुवंस क् संबुक कौया निरहंस ||१६|| षडदूषण मारया किंतु भांति । विराधित पाइ मिल्या रघुनाथ ।। किम सीता का हुआ हरन कइसे वारावर ।। १६ ।। कैसे प्राय मिल्या सुग्रीव । परपंच मारि किया निरजीव ॥1 वभीषण किम पायो राज कुंभकं क्रिया मुक्ति का साज ॥ १६१ ।।
इंद्रजीत श्ररु अन इंद्रजीति । क्रिम विघ किया उसे भयभीत ॥ राजा पवन अंजना विवाह । क्यूं वियोग हुनर बहु ताहि ।। १६२ ।। किम उपज्या हणीमान बलवांन । कैसे सुधि सीता की आंनि ॥ रामचंद्र को कोनी सेव से लह्या समुद्र का छह ।। १३३ ।। मीता प्रांणी दल मंधार । किह कारण सा दर्द निकार | आदि अंत की पूछी बात सब ही का संसा मिट जात ॥ १६४॥
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राम कथा का महत्व
पचपुराण
श्री जिननाथ की वांनी हुई । द्वादस सभा सुनें सहूं कोई || गौतम स्वामी कहैं ब्रधान । सकल सुनेहु तुम परि ध्यान ।। १२५ ।
स्वयंभू रमण सायर चहुं ओर वा सम समंद नहीं को प्रोर ॥ ज्यों कठवती नीर सौ भरे । तामें एक कटोरा धरै ।। १६६॥
इस विधीप समुद्र मकार । तिनका है बहुत विसतार ||
मैं समुद्र लवणोनि । अंबुदीप है ता मी ॥१६७॥