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________________ पापुराए महावीर वाणी श्री जिनवर की यांनी हो । वारह सभा सुने सब कोइ ।। गौतम स्वामी कहै वषांन । द्वादस ममा सुन दे कान ॥१३२।। सप्त तत्त्व पर पंचास्तिकाय । षट द्रव्य नो पदारथ थाय ।। जीय प्रशीव प्राथव अंध | संवर निर्जरा मोक्ष की रिश्च ।। १३३ ।। जीव तत्व दोइ विष कहे । एक सिध एक संसारी रहे । ता मई दोई भव्य अभव्य' । बहु संसार रु ए सच ।।१३४।। भव्यनिकर उसरे भव पार | अभव्य रुली घिरगति मंझारि ।। भारम्पों सष चौरासी जोंनि । ते दुप वरन न सक कवि कौन ॥१३५।। जनम जरा दुष मुगते धने । श्री जिन वचन सन मन में सुने ।। भ्रमत भ्रमत नर दही भरी। साध संगति मति पाई खरी ।। तीन रतन सौ उपजी रुच । दर्शनग्यांन चरित्र जु सच ।।१३६।। तिहु काल सामायक करे । सात विस्न पाठौं मद हरे ।। सोलह कारन का व्रत धरै । वया धर्म दस विध विस्तरं ॥१३७।। च्यारदान दे वित्त सनि । पौषद अभय महार समान । मास्त्र दीयां गाय बहुग्यान । विनयत होई तजि अभिराम ।।१३८।। करमवाटि पहुंचे निरवान । सिवपद पावै सुख सुथान ।। प्रौर जे अंचकूप मैं जीव । तिनुले चिरकाल की नींव ।। १३६ ॥ दया धरम जिनौं न सुहाय । पूजा दान नहि उहाय || सास्व सुनत उपहरो अकुलाइ। मिथ्यावाद वरै वह भाइ ।।१४०।। जिहां होय जीव का बंध । तिसकु घ्यावं मुरिख बंध ।। मांचं कूदै करि मिथ्यात्व । भोजन कर दिवस में राति ।।११।। जे कडु करं कर्म अरु प्रकर्म । जासों काहै हमारा धर्म ॥ मूड हलान पार्षद्ध करें। जीव दया का भेद न धरै ॥१४२।। प्रणछायां जो पीये नीर । करे स्नान मंजन सरीर ॥ कंदमूलादिक सब फल षाय । सत्त संयम पाल्यो नहि जाय ।।१४३।। अंसी जे सेदो मिथ्यात्व । ते नर मर करि नरक जात ।। भय भव सर्दै ते दुष संलाप । नर्क निगोद लहै विल्लाप ।।१४४॥ प्रइसी समझ मिथ्या परिहरी । जैन धर्म निपने सौं करो। संयम पर्त करो मन ल्याय । सुख संपत्ति बाधै अनिकाय ||१४५।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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