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वर्धमान पूजो सब कोइ । मनवंचित फल बहुविध होइ ॥ आदि अंत जे जिन चौवीस पूर्जं सुरतर नावे सीस ||१३|| वदु मुनिवर मूढ केवली । कुमति फले बजाए टली || केवल नागी सदा सहाय सुखिया नकै सुदुरि पलाय ||१४|| दीप अढाई में जे साध । उसके गून हिरदे में बाघ || निस कासर सुमरण में चित्त । ध्यावै श्री जिन च जुनित ||१५|| गणधर च स को गहीं। गुरु की सेवा भक्ति मैं रहूं ॥ जिनधारणो का स्वरूप
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जिनवाणी मैं समय सदा श्रुत बुद्धि प्रकास तदा ॥१६॥ उज्जल व गल मोतीहार कवियनां गुण अगम अपार ।। सीसफूल दोष कुंडलकरण रुगारण नेवर बाजे च ॥ १७॥३ करकंकुल अंगुल मूंदडी मणिमालिक हीरे सू जडी ।। भोती मांग बनी छबि धनी हंस चढी सोभा बहु बनी || १८ | छह दरसल मुष मंडन जान । सुमरत बहु विश्व पार्क ग्यान ॥ मूरिषर्त पनि होइ सुजान । ता कारण सेकं धरि ध्यान ||१६|| श्री जिन मुष की वानी सही । सरस्वती सम को बीजो नहीं ।। करि डंडोत कवि करें प्रणाम । भूला प्रक्षर आांश ठाम ||२०||
सोरठा
सुम जिण ऊषीस, सारद की सेवा करों । त्रिभुबन के ईश, इह दाता बुधि फल तनी ||२१||
चौपई
राम नाम का महात्म्य
पद्मपुराण
रामचंद बंदी जगदीस । साहसवंत महाबल ईस || अनुज वीर लक्ष्मिन बलवांन
राम नाम गून अगम जा मुख राम नाम जा घट राम नाम
तीन बंड में ताकी न ||२२|| न किस पे बरने जांय || संकट में बहुरि न परे ||२३||
अथाह । ते नीसरे । सो का बास । तार्क पाप न आवे पास
जिन श्रवणन राम जस सुने । देवलोक सुष पायें घने || २४|| संकट विपति पढें जे श्राय | राम नाम तिहां होद सहाइ ॥
जल यल वन विहंड ले नाम । मनवांछित सहु सी काम ||२५|| चलत बिदेस नाम जो लेइ । रामचन्द्र ताकु फल देइ ।। जे निश् स सुमरण करें। बहुरि न भवसागर में फिरे ॥२६॥