SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २ वर्धमान पूजो सब कोइ । मनवंचित फल बहुविध होइ ॥ आदि अंत जे जिन चौवीस पूर्जं सुरतर नावे सीस ||१३|| वदु मुनिवर मूढ केवली । कुमति फले बजाए टली || केवल नागी सदा सहाय सुखिया नकै सुदुरि पलाय ||१४|| दीप अढाई में जे साध । उसके गून हिरदे में बाघ || निस कासर सुमरण में चित्त । ध्यावै श्री जिन च जुनित ||१५|| गणधर च स को गहीं। गुरु की सेवा भक्ति मैं रहूं ॥ जिनधारणो का स्वरूप I जिनवाणी मैं समय सदा श्रुत बुद्धि प्रकास तदा ॥१६॥ उज्जल व गल मोतीहार कवियनां गुण अगम अपार ।। सीसफूल दोष कुंडलकरण रुगारण नेवर बाजे च ॥ १७॥३ करकंकुल अंगुल मूंदडी मणिमालिक हीरे सू जडी ।। भोती मांग बनी छबि धनी हंस चढी सोभा बहु बनी || १८ | छह दरसल मुष मंडन जान । सुमरत बहु विश्व पार्क ग्यान ॥ मूरिषर्त पनि होइ सुजान । ता कारण सेकं धरि ध्यान ||१६|| श्री जिन मुष की वानी सही । सरस्वती सम को बीजो नहीं ।। करि डंडोत कवि करें प्रणाम । भूला प्रक्षर आांश ठाम ||२०|| सोरठा सुम जिण ऊषीस, सारद की सेवा करों । त्रिभुबन के ईश, इह दाता बुधि फल तनी ||२१|| चौपई राम नाम का महात्म्य पद्मपुराण रामचंद बंदी जगदीस । साहसवंत महाबल ईस || अनुज वीर लक्ष्मिन बलवांन राम नाम गून अगम जा मुख राम नाम जा घट राम नाम तीन बंड में ताकी न ||२२|| न किस पे बरने जांय || संकट में बहुरि न परे ||२३|| अथाह । ते नीसरे । सो का बास । तार्क पाप न आवे पास जिन श्रवणन राम जस सुने । देवलोक सुष पायें घने || २४|| संकट विपति पढें जे श्राय | राम नाम तिहां होद सहाइ ॥ जल यल वन विहंड ले नाम । मनवांछित सहु सी काम ||२५|| चलत बिदेस नाम जो लेइ । रामचन्द्र ताकु फल देइ ।। जे निश् स सुमरण करें। बहुरि न भवसागर में फिरे ॥२६॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy