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पद्मपुराण (हिन्दी)
चौपई तीर्थकरों का स्तवन
आदिनाथ बंदू जिनराय । चरण कमल सेऊ मन लाय ।। जैनधर्म कीमा परकास । भव्यजीव की पुगी आस ।।१।। अजित नाथ संसारइ जीत । मोक्ष पंथ की जाणी रीत ।। संभव जिश भव भ्रमण निवार 1 उतरे भव सागर ते पार ।।२!! अभिनंदन भय कीने दूरि । सेवत सकल रिद्धि रहै पूरि ।। सुमतिनाय सुभ मति दातार । सेवत पाय सुष प्रपार ॥३।। देव पदमप्रभु सेवा करौं । यारों गति का दख परिहरु ।। देव सुपास पूजो धरि भाव । पूजित उपजे मन को चाव ॥४॥ चन्दाप्रमु ज्यौं दुतिया चंद । दिन दिन कला वध प्रानंद ।। पुष्पदंत जिन पुष्पनि वास । तजि संसार मुगति किया वास ॥५॥ सीतल नाथ दया सौं ध्यान । मुमरत पाच मोक्ष सुथान ।। थे यांसे स्वामी अरिहन्त । टूटे जनम जरा का अन्त ।।६।। वासुपूज्य की पूजा करो । भोसागर के दुख परिहरं ।। विमलनाथ जिन धर्म महंत । भविजन दरस भये भव घेत ॥७॥ अनंतनाथ स्वामी अरिहंत । दरसन पापे सुख अनंत ।। धर्मनाथ जिन धर्म महन । भविजन दरस भये भय अंत ।।८।। सांतिनाथ मुमरी दिन रेण । बाटै लछि होइ सुख बन ॥ 'थनाथ अरि कीने दूर । मये मुगति संसार कर जुध हा
अरहनाथ अरि कीने दूर । सुमिरत रहै सदा रिष पूर ॥ 'मल्लिनाथ महा सुभट सुवीर । प्रष्ट करम जीने धरि धीर ॥१७॥ मुनिसुव्रत पूजी परभात । असुभ करम का होवं धात ।। नमि जिणंद ध्याको करि जोर । तूट जनम जरा की डोर ॥११॥ अरिष्ट नेम जाडू जग. पुनी । सेवत मतिश्रुत पावं धनी ।। पार्वनाथ पूजो धरि घ्यान । सुमरत पार्य पूरन ग्यान ।।१२।।