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देवों ने विषय वस्त्र प्रदान किये। रावण द्वारा बनाया गया चक्र लक्ष्मण के हाथ में आ गया और फिर बी से रावण की मृत्यु हर्ष
पद्मपुराण जैन धर्म का प्रमुख कथानक पुराण है जिसका विगत १२०० - १३०० वर्षों से प्रत्यभिक स्वाध्याय होता रहा है। पद्मपुराण के पश्चात् हरिवशपुराण एवं महापुराण की रचनाएं हुई जो प्रथमानुयोग ग्रंथों के विषय विवेचना का भारता। इन ग्रंथों के अध्ययन से वाषकों को बेसह मालाका पुरुषों के जीवन की एवं दूसरे पुण्यशील व्यक्तियों के जीवन की जानकारी मिलती है जो जीवन को नया मोड़ देने में समर्थ है
प्रस्तुत भाग में पद्मपुराण की एक मात्र पाण्डुलिपि के आधार पर ही मूल पाठ दिया गया है। पाठ भेद अन्य प्रतियों के प्रभाव में नहीं दिये जा सके लेकिन एक मात्र उपलब्ध पाण्डुलिपि बहुत ही स्पष्ट एवं शुद्ध लिखी हुई है। इस पुराण के रचयिता मुनि समाचन्द काष्ठासंघ भट्टारक पराम्परा के सन्त थे । वे काव्य रचना में अत्यधिक कुशल थे इसलिये पद्मपुराण जैसे महाप्रबंध के कमानक को अपने पद्मपुगरण में समेट लिया। उन्होंने दोहा, चोपई सोरठा जैसे लोकप्रिय छन्दों का प्रयोग करके अपनी कृति को और भी जन-जन की कृति बना दी ।
पद्मपुराण के सभी प्रमुख पात्रों के पूर्वभव का भी वर्णन किया गया है जिसका प्रमुख उद्देश्य पूर्वकृत कर्मों के प्रभाव को बतलाना है। यही नहीं विशिष्ट वर्तमान जीवन में शुभ मशुभ पथमा छष्ट बियोग एवं अनिष्ट का संयोग बिना कर्मफल के नहीं होता। राम लक्ष्मण सभी प्रमुख पात्रों के पूर्व भवों का वन किया है जिसके कारण उन्हें वर्तमान जीवन में विभिन्न कष्टों का सामना करना पड़ा है। इस प्रकार के प्रसंगों से पाठकों के मन पर गहरी चोट लगती है मौर से शुभ कार्यों की घोर प्रवृत्त होते हैं।
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अन्त में कविवर कविवर सभाजन्य ने पद्मपुराण की प्रशंसा करते ये लिखा है जो कोई भी पद्मपुराण को पढ़ेंगा उसके मिध्यात्व का नाश होगा और अन्त में स्वमंत्राभ होगा ।
पैसा है यह पदम चरित्र, मिया मोह मिटे भव सत्र
पर्व पर कई बखान, पावे स्वर्गादेव विमान ।। ५७४६ ।।
पद्मपुर की पाण्डुलिपि को प्रकाशन के लिए देने हेतु मैं दिगम्बर जैन मन्दिर जिसी के व्यवस्थापकों का एवं विशेषतः श्री माणकचरवजी मेठी का बाभारी हू भाषा है मन्य शास्त्र भण्डारों के व्यवस्थापकों का भी इसी प्रकार सहयोग मिलता रहेगा जिससे साहित्य प्रकाशन का कार्य व्यवस्थित रूप से होता रहे ।