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मुनि सभाखन्द एवं उनका पद्मपुराण
दहन किया तुम करो याहि । इहै न जीने किस ही उपाय || ससुर को रघुईस | मन ही काटू सब के घीस || ५४६३ ।। मौसी लखमा मु हैं रूठ याहि मुरुंबा कहें बोलें झूठ ।। भभीषण बोल समझाइए भूमि कहा जानें राइ ॥ ५४६४॥
लखमण पडघा मूरछावंत । तासों कहें प्राण भए संत || याकु प्रोषधि करि हूं भली । ऐसी सुरण मन चिंता दली ।।५४६५. ।
घटे बिरोध भया सत भाव भभीषण बोलें तब राव || चाहं गति में एह सुभाव 1 काल न छोरी किस हो ठश्व ।।५४६६ ॥
तीर्थंकर अनं चक्रवत्ति | नारायण प्रतिनारायण सत्ति ।। बलभद्र अनई कामदेव । रुद्र काल बसि हुवई एव ॥ ५४६७।। सायर बंध सुरों को ग्राव व्याप्पं काल न छोर्ड ठांव ॥ मनुष्य पसू नरक गति दल
काहू की न दया चित भइ सोश्त रोवत जागत खात
। काल चक्र सब हो पं चलें || ५४६८ ।। । बालक वृद्ध तरुण को खाद || गावत नांचत चित्त से कान ।। ५४६६।।
जल परवत गुफा मुंए रहे । इन्द्रह की सरणागति महे ॥ तोउ न छोड़े काल घटल | सकल खडा देखें तिहां दल || ५४७०||
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मात पिला सज्जन में कुटुंब । कोई न सके काल को थंभ ॥ पुरुष थे सा कठे गए। समय पाइ कॉल बस श्रए ।। ५४७१ ।। इक नई भई है नांहि । कीजे एती मोह की दाह ॥
मोह करम बैरी बलबान | धन्य साथ जिन जीत्या जान ।।५५७२।०
भरमै जीव मोह के काज । कबही रंक कबही होवें राज || दिन समकित जो कुगति ही धणी । यदि अनादि जाइ न भरणी । ५४७३ ।।
कवण वरण गति का परिवार छोटे बहुत न पाया पार ||
ज्यों बुदबुद जल उपजे में
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से सब जो गति धर्मं । ५४७४ ।
जब लग हंस तब लग प्रीत
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जीव दिना पुदगल भय भीत ॥
बासु कहा कीजिए नेह् । कीजिए सा सरन सु गेह ।।५४७५ ।।
मोष नगर पहुंचावन हार 1|
धरम जीव का करें ग्राधार लखमरण काया कीजिये दहन या का सकल मृतक है चिह्न || ५४७६ ।। इतनी सुण्यां फिर कोप्या राम । मेरी मित्र न होइ निदान || भाई का अब सांधु र रावण का बदला लई फेर ।।५४७७२