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________________ ४६E पप्रपुराग भई रयण सिज्या बिछनाइ | लखमण क तब लिया उठाइ।। सिज्या परि पोढाए जाय । सोवे अपने कंठ लगाय ॥५४५०|| काहूं कू निकट न प्राय न देहि । बहुतै राम कर सनेह ।। इह सेज्या न्यारी है और । तिहां पाई सर्क नहीं प्रौर ।। ५४५१।। मो से कहो मनका सब भेद । तो हो संसय का छेद ।। ऐसी विधि बीती सर्वरी। भया प्रभात पाछिली छरी ।१५४५२।। पांच नाम कहि उठो संवारि । भूपति खडे तुम्हारे द्वार ।। पहराए सब वस्त्र संभारि । राजा सकल कर नमस्कार ॥५४५३।। तेरे ऊपर जांज उठो वीर । तुम विन जल है मेरा सरीर ।। रामचन्द्र सो, बहु भात | पीतबरण दीस किरात ।।५४५४।। उठे मोह बहत बिललाई पहिले मराज काई ।।। तेरा दुःख हं कैसे सहं । विना लषभरा कहो कसे रहूँ ।।५४५५।। बाल संघाती चीरडे, उठ मगन की झाल ॥ मोह माया के उदय तं, मिट नहीं जग जाल ।।५४५६।। इति श्री पयपुराणे लखमरण भृत रामचंद्र विलाप विधान १०६वां विधानक चौपई विद्याधर लखमण मरत सुगी । सब ही न तब मुंडो घुणी ।। हा हा भार हुवे सब ठौर । देस देस में माची रोंड ||५४५७।। भभीषण प्रादि सकल नरेस । सुग्रीव ससांक क्सक दुष के भेस ।। बिह लग छे विद्याधर भूप । असोध्या गए रुदन के रूप ।।५४५८॥ रामचंद्र कू करै नमस्कार । रोवं पीट स्नाइ पछाड ।। पगडी पटक फा? चीर । सबके हिए लखमण की पीर ।।५४५६।। रामचन्द्र रोब करे पुकार | रोवै पीटे खाइ पछाड ।। उठों बीर इनसू तुम बोल । मनं की घुडी बेग सुम खोल ।।५४६०॥ जै मुझत कुछ हुमा विगाड । छिमा करो तुम अब को बार ।। तब राजा समझा धनं । एता मोह कीए नहीं बने ||५४६१।। जीव जाइ पाय गति और । तुम क्या करो रोग सौं सोर ।। मदन किये लछमण जो फिर ! सब मिल यतन बहु विध करें ॥५४६२॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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