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भुमि सभाब एवं उनका पत्रपुरास
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सदा सासता हैं बह खेत्र । दीप अढाई मांहि समेत ।। धातकी पुष्कराचं दुगगां जारण । मानुखोत्र लगि पुरुष प्रबांन ||४|| तामै ध्यंतर किन्नर बसे । किष महागंधर्व दिसे ॥ यक्ष राक्षस भूत पिचाम | जोति पटल जोतीस्वर साच ॥४६७५।। नवग्रह नक्षत्र सतावीस । सोलह स्वर्ग सागर बाईस || सौधर्म ईसान सानत्कुमार 1 महिंद्र ब्रह्म ब्रह्मोसर सार ||४६७६।। लांतष कापिष्ट शुक्र महाशुक्र । सतार सहस्रार सह सुक्र ।। पानस प्रानत पारन अच्युत्त । सोलग स्वर्ग कह गये भगवंत ।।४६७ तारे जमा न बदल : ना परि दिमशुसरे ।। विजय विजयंती जयंत । अपराजिस सरवारथ सिद्धि निवसंत ||४९७८ मुगति क्षेत्र है ताके प्रत । तिण हां पहुंचा सिद्ध प्रति ।। रामचन्द्र कीया परसन्न । मुगति भेद समझायो भिन्न ।।४६७६।। मिट संदेह संसम को पीर । अजर अमर नहीं च्याप ईर ।। दरसन यान का नाहीं वोड । सदा सरवदा नहि है विसोड ।।४६८०॥ संसारी कुकदे न सुख । सुभ असुम ते सुख प्रनै दुःल ।। मुभ संजोग त सुन्य का मूल । माया मोह में रहिया भूल ।। ४६५१।। भया विछोह सब सुख बिसरया । रोग सोग भारत में भरया ।।
ए सुख जारणों दुःख समान । मोक्ष सुख का मत न पान ।।४६८२।। सुख को तरतमता
सब सुखी जानौं प्रथीपति । उनतें सुखिया है चक्रवति ।। किश्वर देव हैं इन सुखी 1 जोतगी के सुख बहुत बकी ।।४६८३।। इन्द्र परगेन्द्र सब ही ते बाधि । सरबारथसिध सुख अगाध ।। सबसे बड़ा मोक्ष का सृग्य । तिहां न च्यापं कवही दुःख ।।४९८४।। ते सुख विस पै बरणे जाहि । अंसी वसतु मही पर नाहि ॥ रामचन्द्र कीया नमस्कार । मोष्य पंथ क्रिम उतरे पार ||४६८५॥
मरवमूषण बोल्या केवली । जिन धरम वाणी सबतें भनी ।। तस्व वर्णन
सप्त तत्त्व षट द्रव्य बखांन । नो पदार्थ नै दरसन ग्यांन ||४६६६|| पंकाय खेश्या है षष्ट | द्वादश अनुप्रेष्या जू प्ठ ।। दयापरम दस विध स्यौं करें । सोलह कारण का व्रत घरै ॥४६||