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________________ ४३२ केई ऊपर भारा भरें। चीरें देह टूक शेष करें । बहुरि हुवे देह की देह | मारैं मुदगर कीजे खेह ॥४६६१।। पाराजिम समर्ट खंड फेर । पाप्याने राखई घेर ॥ जिहि जीव का खाया मांस । ति कारण वे पावें वास ।।४६६२ ।। निस भोजन अगालो नीर । उहा न जाये कैसी पीर ॥ मिथ्यानी कु' भैसी गढ़ी | जिनवाणी कु न भारं चिती ॥४६६३॥ देवास्त्र गुरु निसर्च नहो । ताहि नरक गति श्रा सहाँ | 1 जे दुख मैं दरणों समझाई। ताका पार न पाया जा ।।४६६४ ।। दूहा उपसम बेद खाईका समकित विष है तीन ॥ जे मनमें निसचं घरं, ते जाणों परवीन ॥ ४६६५ || चौपई पद्मपुरा जाके है समकित दिक चित्त । ते गति खोटो भ्रमं न नित || हैं मूकति समकित परसाव समेकित बिना करणी सकवाद ।।४६६६।। अंडज पोतज गर्भ उतपत्ति । स्वेतज सनमून उपजत्त ॥ पुदगल लानु एविध धीर । श्रहारक तेजस कारमन सरीर ||४६६७ । संख्यात परदेसी अवर असंख्यात । अनंत प्रदेसी जीव की जाति || अष्ट अंग ग्यॉन का भेद । पंच खरे तीन खोटे रे || ४६६८ || मश्रित अवधि मनपरजय भली । पंचम ग्यान को केवली ।। क्षु अवधि ए ग्यति | दरसन मन परजय केवल प्रमान ॥ ४६६६ कुमति कुति खोटी अवधी 1 करें दुर आमा फु सोधि || मध्यलोक में ढाई द्वीप । अवर समुद्रह है समीप ||४६७०॥ द्वीप समुद्र वर्णन जंबुद्वीप जोजन इक लाख । लवण उदधि चषां पास || जिह में बड़ा सुदर्शन मेर। षट् कुलाचल ढिग बहू फेर ॥४६७१। हिमवन महा हिमवन नील | विजयारध परवत असत श्रमील || सीता नदी सीतोदा और चउदह नदी निकसी गिरि फोड ||४१७२ ॥ क्षेत्र भरत रावत होइ । इस विध क्षेत्र दसों दिस सोइ || घटै बढें तिहां व्यापै काल । एक सो साठ खेत्र सुविसाल ||४६७३ ।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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