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________________ बुलि सभाचस्व एवं उसका पद्मपुराण करि बिहार अजोष्य भाइ | करें तपस्या मन वच काइ ॥ करण मंडलर राणी सुभ पाइ रो पोर्ट बहुत रिसाइ ||४८६५ मैं उनकी कछु करी न सोड। उनी बिचारी मन में और अब मैं वा परि तज परान यक्षिणी द्वारा मुनि पर उपसर्ग भई यक्षिणी यक्ष के गेह ॥ सर्व भूषण की मैं भी नारि ॥। ४८१७।। श्रम पांरणी बिन छोडी देह तब मम मांही अवधि विचार दिन भरगुरण मुझ दूषण ल्याइ । वह तप करें अजोध्या जाइ ॥ श्रव में उनसों मा गैर बंधन बेडी बांध्या मुनि घेर ||४८६८|| । भारत रुद्र घरो जन ध्यान ॥ ४६६६ ॥ " जय मुनि चाहया लेा महार । बंधण छूट गए लिए बार || अक्षरणी कुं तब उपज्या क्रोम ल्याई प्रगति तिहां बरणी न सोध ॥१४६॥ अंतराइ मुनि फिर करि चल्या । मास उपवासी पारणा टल्पा ।। बहुरि उमा बाहार निमित्त ग्रांधी चली मारये थकित ३४२०० कांटे मारग मांहि बिछाइ । पग घरों का नाही संहि || बाही ठांम पाप्पा मुनि जोग । नगर मांहि तं प्रायें लोग ||४१०१ ॥ हेबा दे थैली तिहा बारि ॥ थैली पडी साथ पग हेठ ||४२०२ ।। व्यंतरी गई सेठ भंडार । प्रभात भया तब खोजें सेट I आए सकल प्रचंभ होइ । कोई कहै जो होता चोर ध्यानारूढ खडा मुनिराज । कुतो वांच्यो गलां सु प्राय ॥ भविजन मायें मुनिवर जात । टालि उपसर्ग पखाल्या गाल ।।४६०४, भली बात भाखे नहीं कोई || तो क्यूं टाढा रहे इस ठौर ||४१०३ || F पूजा करी भोजन जिभा । वनमें मुनि ने गए पहुँचाय ॥ व्यंतरी रतन हार चुराइ । मुनि के गले गयी पराय ११४६०५१ राजा सुखी राज को मार इसको देख यह चरचा करें ४२७ देख्या साथ के गले मझार ॥ 1 | जनी के भेष यह चोर फिरें ॥४६०६।। मार्गे फोडे थे सेठ भंडार । प्रय इन हरया रतन का हार ॥ त मंत्री समझाने चैन । इनतो बरत भरा है जंन १४६०७१ जे इछा चोरी की घरें। तो क्यूं प्रत्यक्ष राखें गलै ॥ समझ बचन अपने घर गए। व्यंतरी चिह्न करें नए नए १४६०८
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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