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________________ You सीता के साथ संघ का श्रागमन चौपई रतनजडित सोहे सुखपाल | मरिण माणिक लागे बहु बाल || पाटवणे पाटंवर बिछे । छत्री कलस मोती के गधे ||४६४०|| सोह मुखमल तर गलेस । जो पंचरंग के भेस ।। तामें बईठ सो सीतां चली । होला डोसा ता संग चिली || ४६४१ ।। पद्मपुराण बहुत सखी या पा हुई । ढिग डिंग गांव सब हरियल महीं || देस देस के नृपति प्रा । नमस्कार करि ठावे राइ ।। ४६४२ ।। पुंडरीक सुराष्ट देस तिहां । सहु कोई सुखिया जिहां ॥ घर्मेण्ट सर्व नसे तिहां लोग पांनकूल सौ धाके भोग ||४६४३ ।। नगर बसैं स्वर्गं अनुहार। जिसका बहुत बडा विसतार || न उपवन वापिका कूप सोभा कमला ती अनंग ।।४६४४ ।। हाट बाजार छाए सब हो । कंचन कलस घरे सिर पोर ॥ छांटी गलियों नीर सुबास देखें नारि चढी पावास ।।४६४५ ।। सीता श्राई नगर मकार मंदिर में पहुंची तिस बार || बघ की गई । लागी सहु सीता के पाय ।। ४६४६ ।। बाघ बहु स्तुति करें। श्राजि भाग पनि म्हारा करें || सीता बहन भाई हम द्वारि । सब मिल करो नरगद की सार ||४६४७ | ज्यों पीहर में रहे पूतरी से रहे सीता सिंह पुरी ।। सुख सौ बीतें बासर रैन । पूजा दान करें मन चैन || ४६४८ ।। कृतांत को व्यथा कृतति मारग के मांझ । रोवत ताहि पड गई सझि || हाइ हाइ करि रो रोज सीता का पाऊं कित खोज || ४६४६ || छोडी तिहां महा विपरीत || महा भयानक वन भयभीत । किण पसुच सीता कु मख्या वा बन में को कार है रिष्या ।। ४६५० ।। आया रामचन्द्र के पास नौचो मुडी खडा उदास ।। नैनां नीर बहै असराल मानू चुवं मेघ की धार ।। ४६५१ ।। कठिन कठिन करि निकस बात | वन में छोडी सीता मात ॥ महासती दई तुम निकारि । राजनीति करी नहीं विचार ।। ४६५१ ॥ वन है भयानक गंगा पार । अजगर तिही हा विस्तार || रहे स्यंघ तिहा खोह मकार । श्ररना भैंसा सांड सीयांर ।।४६५३ ।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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