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________________ मुनि सभाब एवं उनका पपपुराण राम लक्ष्मण का परिवार जिनवाणी सु' संयय जाय । कहै भेद गोतम मुनि राइ ।। सत्र सहैव लक्षमण के नारि । रूपवंत ससि की उरिणहार ।। ४४७२ || तामें पाट पाठ की धणी । गुग्ण लष्यण अति सोभा वणी ॥ विसल्या मेघद्रवरण की सुता । प्रथम पटराणी सुरस की लता ।।४४७१३॥ रूपवंत प्रदर बनमाल । कल्पांरा मासा अन रसनमाल ।। जितपदमा मूखषी मनोरमा । गुगलष्यग सब ही सो समां 1|४४७२।। प्रष्ट सहन राम के भोम । सोभे च्यारि पट्ट की धाम ।। प्रथम सीता अर्ने पदमावती । रतिप्रभा श्रीदामां सोभावती ।।४४७३।। लक्षमण के पुत्र दोइ से पचास 1 सात रत्न की पगी मास ।। चक्र सुदर्शन व प्रने गदा । धनुष खडग पर बरछीक धुजा ।।४४७४।। श्रीधर निसल्या में गर्म लह्या । प्रवी तिलक रूपर्यन अनमिया ॥ मंगल कल्यास माला का पूत । विमलप्रम पदमावसी संयुक्त ।। ४४७५॥ बनमाला का घरजन वृश्य । जयवंती के मुत क्रोत रव्य ।। मनोरमा संपूरण कीर्त्त । रतिमाला के श्रीकेस उतपत्ति ।।४४७६॥ मन्य कुमार कहां लागि गिरणों । नामावली कहां लो भगों ।। दृष्योढ कोडि उसम सुमार । च्यार वीर का वघ्या परिवार ।। ४४.७७11 पुन्य उदें ते बार वृष्य । कर राज निकंटक रिध्य ।। सात दिवस सुख में विहाइ । भोग भुगति माने तिहां राइ ।।४४७८ ।। सोरठा उदय भए जब पुन्य, सुख संपनि बाघी घनी ।। अधिक प्रतापी भरुन, जीत्या सत्र दुरजन अनी ।। ४४.६it इति श्री पपपुराणे राम लक्षमण विभव विधानक ६७ वां विधानक घोपी राजमहल प्रसि ऊंचे मंदिर रमणीक । कंचन रतन सहित रमणीक ।। भले भले समरापे चित्त । सोज्या तिण ठां वणी पचित्र ।।४४८०॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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