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________________ ३६४ पचपुराग २ रन प्रसफंद न बउले राई । तुम तो कोप्या रिष खाई ।। मान मंग साष का किया । तो इह दुःख हमें पाया ।।४४५६।। तुम कलप हम भया दुख । अब तुम कीया दोउं दला सुख । करें महोछब पुर में गए । मनोरमा वीवाही सुख भए ।। ४४६० ।। भोग मगन में कर उछाह । मनोरमा लछमन सा नाह ।। पुन्य प्रसाद ने जीडी भई । ते सुख सोभा जाई न गिणी ॥४८६१।। बहो पकवान भोजन करे । कंचन थाल भरि अग्रे घरे ।। परम जन जोग, पर जम गति मिल जीये भरणे ।।४४६२।। बीडा दिया हाथ ही हाय । जितने लोग राम के साथ ॥ रहेसे सफल किया प्रानंद ! बाजंतर बाजे सुख कंद ।।४४६३।। मडिल्ल पुण्य तणे परसाद जीत सब ठा हुई ।। साध्या सगला देस सबद ज ज हुई ।। मान भूपति भौखि सुजस प्रगटमा घण्यां ।। रामचंद्र गुण अगम अपार जांइ किस पं गणा ।।४४६४।। इति श्री पद्मपुराणे मनोरमा विवाह लाभ विधानक ८६ वां विषानक चौपई रतनपुर सुख मुगत्या सव साथ । बहुत देस जीत्या रघुनाथ ।। रवि नभ वीचि सोभित पुरी । मेघ स्वाम सिव मध नगरी ॥४४६५।। गंधर्ववति प्रमरपुर देस । लिषमीधर तसु नगर नरेस ।। किनर गीत अमरपुर देस 1 लक्षमीधर तसु मगर नरेस ।।४४६६।। श्रीगहमा सकत नरंजम जोतपुर । अवरघणां तिहां साध्या नगर ।। ससिधा गधारमल वेश । धन सिध सुथांन मनोभद्र नरेस ।।४४६७। श्री विजकातिपुर तिलक सघांन । बहुत भूप साधे बलवान ।। विजया, साथ मनाई प्राण । राम लखमरण प्रनि राजान ॥४४६८।। यहाँ श्रेणिक पूछ परसन्न । लवनांकुस की कहो उतपन्न ।। राम लक्षमए के केती प्रसतरी । केता पुष कुल वृद्धत करी ।।४४६९।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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