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________________ मुनि सभाधंव एवं उपका पापुराग ३८७ कर विप्र बात इंह भाई । कोसंत्री नगरी इंद्रदस राई ।। मनोग कला वाक' पटघणी । इन्द्रदत्ता पुत्री बह गुणी ॥४३६७।। विद्या गुण प्रति ही प्रवीण । और सकल जाइगां नहीं होरा ।। जो बाहि जीत ताहि वा घर । नमंती कहा प्रचल बसि कर।।४३६८।। बिसान पंडित राधा के द्वार । विद्या सीने राजकुमार || अचल है राव पंडित बसक । राजकुमारी जीती असिक ।।४३६६।। सुख मैं दिन कछु बीते ताहि । अचल हुवा तिहां नर नाह ॥ प्रास पास जीते सब देस | मथुरा प्राह कियो परवेस ।।४३७०।। वाजंतर चंद्रमन्द्र ने सुण : सब सामंत अगाऊ बा ।। राजा मुगी पुत्र की सुध । भए प्रानंद बिचारी बुध ।।४३७१ ।। चंद्रभद्र दिगम्बर भया । मथुरा राज अचल कू दिया । ग्राठी भाई मामा तीन । ए सच जाइ भये प्राचीन ।।४३७२३॥ आप वाभरण पावी तब द्वार । पोल्या भटक कर लिह बार ।। राज सभा में नाचें नट ! विप्र सों कर पौजियां हठ ॥४३७३३॥ राजा दृष्टि वांभरण पर पडी। प्रायो बुलावो वाही घड़ी ।। आभूषण नीका पहराइ । अाप बराबरि राखे राय ।।४३७४।। हर गय विभब दीने बहुदेस । बहतमया नित करें नरेस ।। सुखसों राज बहु अने किया । सावधो नगर विकू दिया 11४३७५।। जय समुद्र मुनिपर पं गये । सांभलि धरम दिगंबर भये ।। तेरह विष सौ चारित परया । दया अंग दस विष तप करपा ।।४३४६।। प्रातम चित्त लगाया ध्यान । महेन्द्र स्वर्ग पाइया विमान ।। चउथै स्वर्ग देवता भए । पूरण भाव तिहां से चए ।।४३७७।। प्रचल जीव सत्र पन जान । प्राप ऋतांत दक्र भया मान ।। सेनापति सत्र धन बली । जाने धरम करम की गली ।।४३७८।। कई जनम मथुरा में पाइ । मथुरा कू चाहे इह भाइ ।। पुण्यवंत पूरव तप किया । ऊंची गति बहूंत' भव लिया ।।४३७६।। सोरठा पूरब मन का नेह, तांते मोह किया धणां ।। रूपर्वत चल देह, फेर राज मथुरा वण्यां ।।४३८०।। इति श्री पपपुराणे सत्रुधन पूर्व भव विधान ८४ वां विधानक
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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