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________________ रखपुराणं तृष्णा लोभ कदे घाट नाहि । भरमत फिरथा चिहुँ गति माहि ।। साध नाम सुउबरे प्रांन । करू तपस्या मातम ध्यान ॥४३५३।। कान्यांण मुनीसुर के हिग गया। केस उतारि मुनीस्बर भया ।। सहै परोसा बीस अन दो । तप प्रसाद ऊंची गति होइ ॥४३५४।। स्वर्ग तीसरे रतन विमान । कर भोग तिहां मुख निधान ।। मथुरा पति तिहा चन्द्रा भद्र । सुधां राणी महा विचित्र ।।४३५.५।। सूरज प्रबद राणी का भ्रात । मखांत पुत्र भए प्राय ।। कनक प्रभा रांगी दूसरी । रूप लध्यन गुण लावन्य भरी ।।४३५६।। कुलधर का जीव पाए तर कुख । जम्म्या पुत्र भए धन सुख ।। रूपवंत रवि जेम प्रताप । रहसे दोनू माय अने बाप ।।४३५७ । जनम समै दीमा बहु दांन । सब ही का राख्या सनमान ।। दिन दिन कूवर बढे पल घडी । देखत नयन रली प्रति खरी ॥४३५८।। सावथी नगरी का नाव । वल्पद्विज बस तिह ठाव ।। अंगक क्रिया विप्र के गेह । दंपति कर सदा सुख सनेह ।।४३५६ ।। अचल पुत्र ता गरभ भया । जोवनर्वत सोम बह कया ।। भूख मांहि सुत दीना कादि । तिलक वन माहि विप्रसुत ताढि ॥४३६०।। अचल कुवर के पाठों वीर । तीन मामा के मम पीर ।। इह तो एक ही दीस बलवंत । निसचे राज लहँगा अंत ॥४३६१।। इसके चाहै हण्यां परांन । कनक प्रभा सुणी इह कान । अचल पुत्र प्रहरी के साथ । मारघा चाहै पुत्र अनाथ ।।४३६२।। जाहि पुत्र देसांतर लेह । करो जाइ काहू की सेव || दुरजन के संग फिरणां बुरा । तोहि उपदेस दिया मैं खरा ॥४३६३।। इतनी सुणत भानिया कुमार । वन में रुदन कर हा हा कार ।। माप सोच करें द्विज तिहां घरणी । के कोई देव के पंडित गुणी ॥४३६४।। के भूपति के बगपति राय । पूबै कुमर विप्र जू प्राय ।। कहो कुमर तूं अपरणा नाम । किह कारण पाए इस ताम ||४३६५।। योनं मचन तब अचलकुमार 1 मोकुवन में दिया निकाल || सा कारण सदन करू' बन मांझ । केसी चितई इण ठां सांझ ।।४३६६॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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