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________________ मुनि समाय एवं समका पमपुराण ३७५ भरत भूपती हूँ' कर जोडि । नमस्कार कीया तब बहोडिग जीव भ्रम्पो चिरकाल अनंत । हीडत हीडत नहीं पायो मत ।।४२३८।। थके बहुत न लहे विसराम । ज्यो पथिक भ्रमं गामों गाम || सीतल छांह हे अन माहीं । बाको कहीं पाइये नाहि ।।२३६।। चहुंगसि भ्रमत लामो नहीं पंथ । सुण्या नहीं जिणबाणी ग्रन्थ ।। मिथ्या धर्म तं लहीय न ठोडि । प्रभू बिन सराणा नाहीं और ॥४०४० भवसागर अति अगम अथाह । सद्गुरु पक. बूडत नाह ।। अजर प्रमर तहां पा सौख्य । गुरु संगत तं लहोए मोष्य ।।४२४७।। लाभ षण सब दीने डार । कुडल सोभै जोति प्रपार ।। सहु उतारि कर लुचे केस । मुनिवर भए दिगंबर भेस १४२४२।। सहल दीया माई :: । मान बहे मिन मा ।। कैकयी का बिलाप हाइ पुत्र तं कीनी बुरी । मेरी दया हूं हिय नहीं धरी ॥४२४३।। मोबन समें तजे भरतार । पुत्र लिया संयम का भार ।। ए दुःख मैं कैसे करि सहूं । पुत्र बिना हूं कैसे रहूं ।।४२४४।। मूविंत भई कैफईया । संघ उपाव घणा ही किया ।। मई सचेत बहरि बिललाइ । रामलखण बोले समझाय ।। ४२४५।। माता मति करो तुम बिलाप । हम सेवा तुम करिहैं प्राप 11 भरथ जु कुल उधारण भए । सुभट बरत जिण सचिसौं लए ।।४६४६।। कैकयी का वैराग पहले ही मन था वैराग । अब इन करया सकल ही त्याग ।। केकईया मन प्राण्यां ग्यांन । घरम विचार किया सुभ ध्यान ॥४२४७।। प्रथीमती पारजिका के पास । दिक्ष्या लही मुकति की प्रास ।। तीन से मंग पनि प्रसतरी । सत्य सील संयम सुभरी ।।४२४८।। प्रातम ध्यान लगाया जोग । छंडचा सब संसारी भोग । दया भाष नगलां पर नित्य । समकित सु भया निश्चल चिप्स ।।४२४६ भरघो ध्यान भगवंत सुपातम सु धरि प्रीत ।। भरथ भूप ही बहुवली, करी धरम को रीत ।।४२५७।। इति भी पापुराणे भरत केकय । निःक्रमण विधान ८० वा विधानक
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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