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________________ पुरस सोरठा जो कछु दोजे दाम, तमो सकल अभिमान कू॥ पावा निरभ्य बान, या परम परमापसून १२॥ इति श्री पापपुराणे विभुवम मसल मसोम विधान ७७ वा विषानक चौपाई परस का हाथी पर बढना हाथी सहा परम के म्यांन 1 राम लक्ष्मण विंग पहुंचे मान ।। भूपर खेचर नरपति धने । चउषां फेर मनख इम भणे ।।४१२१॥ इह दंती सब ते मयमंत । फैसे भाव धरपा इन संत " भरत प्राइ चढे ता पीठ । सीता विसल्या प्राक्रमो दीठ ।।४१२२॥ एभी संग घडी तिरण मार | अपनी अपनी ठाम विचार ।। डोली डोला अनं चकडोल । रथ पालखीया बहुत अमोल ॥४१२३।। सेना बहुत पली ता संग । पहिर प्राभूषण भले सुरंग ।। कुसुम प्रमोद मंदन बिहार । तिहा पाए सगला परिवार ॥४१२४|| उतर मंसहेपुर सम गये । सगले सोग अचं भए ।। इह गंवर या महाबलीष्ट । कमा रहा मान करी दिष्ट ।।४१२५।। हवी बारा तप साधना बहु महावत पाए पास | मला मलीदा सौंज सुवासा हायी खाये न खोस गयन । सेबग बोले मधुरे वैन ||४१२६॥ प्राभूषण गरे सब डारि । गज नहीं देखें पोखि उपाहि ।। पाया प्रनै सथानिक खडा । खम्बा सफल सउंम तिहां पड्या ।।४१२७। से खडा खंभ पाषांन । तैसें मंगल स्थाया घ्यान ॥ जन की बात न पा कोइ । ए अचरज सब के मन होई ।।४१२८।। पंचक ग्रंथ संभाले वैद्य । अजषध ल्याव मन में खेद । विद्याधर जंत्र मंत्र बहु करें । कुछ उपाय नहीं सुसरं ॥४१२६॥ कर जीतिगी ग्रह चाल । कोई कहै मारघा है इन पाल । अंसा गज पृथ्वी पं नहीं । ए रावण या पारोषन सही ॥४१३०॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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