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________________ मुनि सभाचंद एवं उनका पपपुराण वंगग भाव हम चित्तै घरै । हमारे संग तुम तप मापरं ।। केकझ्या माता विललाइ । गणी रुदन कर यह भाय ।।४१०७५३ सीता प्रबर विमल्या आइ । सह परिवार को समझाइ ॥ कोमल काया लघु है बेस । महा कठिन मुनिवर का भेस ।।४१०।। षट रितु के दुख कैसे सहो । सज्या भूमि परीसा लहो 11 नीरस भोजन वन का वास.। किम छोडो तुम भोग विलास ॥४१०६॥ स्वर्ग लोक सम है यह रिद्ध । अन्य जनम किण देखी सिर ।। बावक धाम पालो घरमांहि । परजा दान करो नित चाह ॥४११०॥ वाल समै तप करणा नहीं । चउर्थ प्राथम विष्या कही ।। बेग चलो अब करो सनान । हमारा वचन सुणुदे कान ॥४१११॥ पकडि बांह खेंचे सह प्रस्तरी ! ल्यायें उबटणां सुगंध प्रति खरी ।। र अल घोर रू अंग गरम पान ' नहीं भंग ॥४११२॥ पूजा करी श्री जिनदेव । सफल प्रस्तरी करें ऊभी सेव ॥ त्रिलोकमंडण छूटो गयंद । तोडि बंधण करचा प्रति दुद ।।४११३।। पाई हाट मंदिर अरु पौल । सब नगरी मां मांची रौर ।। छाट मगन जंत्र भरु बोए । गज नहीं माने कोई कारण ।।४११४।। उन्मत हाथी का प्रकस्मात प्रागमन जिहां भरभ कर पूजा ध्यान । मैंगल भाया उनहीं थान || व्याकुल हुई सब प्रस्तरी । भरथ भूप मय चित्त न धरी ।।४११५॥ रामचंद्र लक्षमण इह सुनी । उनकू देखत हूं सब दुनी ।। डार फास हस्ती कू' धनी । मान नहीं कोष का धनी ॥४११६॥ देखि भरथ कू हाथीनिया । नमस्कार तन बहु विध किया ।। भरथ नरेस प्रचंभे भया । या का मद काहे ते गया ४११७|| जाती समरण भयो गयंद । पुरव भव का समात्या बिंद ।। ब्रह्मोसर सुरग सुरगति पाई । उहा ते पंड राजा के माई ||४११।। दान येह कीया यह मान । तातें हस्ती उपल्या प्रांन । दीजे कटु दया के निमित्त । बयात्रत कोजे वह मंत ।।४११६॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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