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________________ सम्पादकीय देश के जन ग्रंथागार हिन्दी ग्रंथों की पाण्डुलिपियों के लिए नितने समृय भण्डार हैं उतने दूसरे ग्रंथागार नहीं है । इन ग्रंथालयों में ५० प्रतिशत से भी अधिक संग्रह हिन्दी ग्रंथों का रहता है जो विगस ४००-५०० वर्षों में लिखा गया है इसीलिए किसी भी ग्रंथ' भण्गर को शोष खोज एवं सूचीकरण का परिणाम प्रबर्षित एवं प्रज्ञात कृतियों की प्राप्ति होती है। मैने प्रभी विगत वर्ष एवं इस वर्ष में जितने शास्त्र भण्डार देने हैं उनमें प्रत्येक में हिन्दी की प्रचित कृतियां प्रकरण मिली है। प्रस्तुत पद्मपुराण की उपब्धि भी सन् १९८३, टिम्गी (राजस्थान) के । भास्प भण्डार को देखते समय हई थी। जब पदमपुराण की पाण्डुलिपि मिली तो भानन्द से मन उछल पड़ा और मपूर्व प्रसन्नता छा गयी । पाण्डुलिपि की बहुत समय सक देखता रहा कि कहीं देखने में भ्रम तो नहीं हो रहा है । इसी शास्त्र भण्डार में मुझे धनपाल कषि के ऐतिहासिक गीत, भ. महेन्द्रकीत्ति के प्राध्यामिक पद भी उपलब्ध हुए हैं जो इसके पूर्व प्रज्ञात एवं प्रमुपलब्ध माने जाते थे। वास्तव में राजस्थान, बेहली एवं प्रागरा मंडल के जैन कवियों ने हिन्दी की जितनी सेवा की है वह साहित्यिक इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखने योग्य है लेकिन उनकी शुङ साहियिक सेवामों को भी साम्प्रदायिक नाम देकर उसे हिन्दी साहित्य के इतिहास में मविदेरुप घोषित कर दिया गया जिसका परिणाम जैन कवियों द्वारा निबद्ध हिन्दी साहित्य के साथ उपेक्षा का व्यवहार होता रहा है। श्री महावीर ग्रंथ पकादमी की स्थापना के पीछे यही एक भावना रही है कि शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत रचनामों को प्रकाश में लाया जावे और उममें भी प्रम तक अशाप्त एवं प्रचचित कवियों एवं उनकी रचनामों को प्रमुखता दी जावे। मुझे यह लिखते हुए प्रसन्नता है कि अब तक प्रकाशित भाठ भागों में पाये हुए अधिकांश कवि अशात एवं प्रचित हैं जिनमें ब्रह्म रायमल्ल, भट्टारक त्रिभुवनकोत्ति, बुधराज, छीहल, ठक्कुरसी, गारबदास, चतुरूमल प्र. जिनवास, भ. रत्नकोति, कुमुववन्द्र,प्रा. सोमकीति,ब. यशोषर, स्व.लाखीचन्द, बुलाकीदास,हेमराज, बाई भजीतमति, धनपाल, देवेन्द्र व महेन्द्रकीनि एवं मुनि सभापन्द के माम विशेषता उल्लेखनीय है । लेकिन निरन्तर खोज एवं शोध के कारण हिन्दी भाषा के जैनकवियों
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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