SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० चिन्तित हो गया। एक दिन रावण प्रपनी मां के साथ जा रहा था तब उसने घपनी मां से राजा और उसके नगर के बारे में पूछा। मां ने लंका के बारे में रावण को सब कुछ बता दिया। इससे रावण को बड़ा कोष आया और लंका जीतने का निश्चय किया। उसने मां के सामने ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया। फिर तीनों भाईयों ने विद्या प्राप्ति के लिए तपस्या करना प्रारम्भ किया । यक्ष ने बहुत प्रभार के विश्न उपस्थित किये। देवांगना का रूप धारण करके उन्हें अपने ध्यान से डिगाना चाहा लेकिन कोई भी अपनी साधना से नहीं डिगे। रावण ने एक साथ ग्यारह सौ विद्याएं प्राप्त की। प्रस्तावना रावण ने विद्या प्राप्ति के पश्चात् पहिले मन्दोदरी से विवाह किया और फिर लंका को वन राजा से छीन ली। लंका विजय के पूर्व दशानन को मदोदरी से इन्द्रजीत की प्राप्ति हुई। लंका राक्षस वंसी रावण की हो गयी । रावण एक बार कैलाश पर जिन वन्दना के लिये गया । मार्ग में उसे वालि मुनि तपस्या करते हुए मिले। रावण ने यपने विद्याबल द्वारा श्रपनी शक्ति का प्रदर्शन किया । तपस्या करते हुए बालि ने अपना अंगूठा टेक दिया । रावण उसके भार को नहीं सह सका और चिल्लाने लगा। बालि मुनि को दया श्रामी तद कहीं जाकर रावण की प्राण रक्षा हो सकी। रावण ने बालि की स्तुति की तथा वैराग्य लेने की इच्छा प्रकट की । सभी धरन्द्र ने रावण को वृद्धावस्था में साधु जीवन अपनाने की बात कही तथा रावण को एक शक्तिबाग देकर उसे पीर भी बलशाली बना दिया। इसके पश्चात् रावण ने सहखरश्मि राजा पर विजय प्राप्त की। इसके पश्चात् वसु राजा की कथा आती है। नारद एवं पर्वत के मध्य चर्चा छिड़ जाती है । पर्वत "जज्ञ किया बैकुंठा जाई" में विश्वास करता है | नारद इस विचार का खण्डन करता है। 'ज' शब्द पर दोनों में बहस होती है । वे वसु राजा के पास निर्णय के लिये जाते हैं। वसु राजा पर्वत की पक्ष लेकर अज शब्द का अर्थ बकरा बताता है । इस असत्य निर्णय से वह सिंहासन सहित नरक में जाता है पर्वत को जब चारों ओर से निन्दा होने लगी तो वह सन्यासी बन जाता है और राजा मारुत को यज्ञ करने का परामर्श देता है। जब रावण को यज्ञ का पता चलता है तो वह राजा मारुत एवं सभी विप्रों को बांध लेता है लेकिन अन्त में नारद दया करके उन्हें छुड़ा देते हैं । रावण का एक विवाह कनकप्रभा से होता है। उसकी एक कन्या मधु का विवाह मथुरा के राजा हरिवाहन के पुत्र मधु के साथ होता है । राव के कैलाश पर्वत पर जाने की सूचना पाकर इन्द्र ने नलकूबड़ राजा के भय से मुक्त करने की प्रार्थनाको शवसा सहायता के लिए दौड़ा लेकिन नलकुबड़ ने गढ़ के किवाड़
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy