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________________ मुनि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण है इसी में लंका के राजा महाराक्षस एवं उसके पुत्र अमर राक्षस मादि का वर्णन भी माता है। चतुर्थ कथा में रिगक मादा वारस नो नशा लाग्ने की इच्छा, उसकी उत्पत्ति, मेघपुर नगर में राजा मतेन्द्र पपने पुत्र श्रीकंठ के साथ राज्य करता है। उसकी एक सुन्दर पुत्री को रत्नपुरी के राजा अपने पुत्र पत्रोत्तर के लिये मांगता है लेकिन उसे यह नहीं मिलती है। एक बार जब विद्यापर सुमेरू पर्वत पर जाता है तो पुष्पोसर की लड़की की सुन्दरता देख कर मुग्ध हो जाते है । पुष्पोत्तर श्रीकंठ का पीछा करता है वह भाग कर लंका चला जाता हैं। फिर पद्मावती से उसका विवाह हो जाता है। लंका नरेशा कोतिषवस श्रीकंठ को किषलपुर का राजा बना देता है । वहां घह वर्षों तक राज्य करता है । एक बार उसने अपने पूरे परिवार के साथ मानुषोत्तर पर्वत की यात्रा की तथा वहां देव बनकर नन्दीश्वर द्वीप की यात्रा करने की इच्छा प्रकट की फिर अपने पुत्र वचकंठ को राज्य भार सौपकर स्वयं ने जिन दीक्षा धारण करली । श्रीकंठ राज्य करने लगा । एक बार उसने एक चारण ऋद्धि पारी मुनि से अपने पूर्व भव पूछे । पूर्व भव सुनने के पश्चात् उसे वैराग्य हो गया और अपने पुत्र को राज्य देकर स्वयं मुनि बन गया । इसके पश्चात् कितने ही राजा हये । इसी परम्परा में होने वाले अमरप्रभ राजा का मुगमती से विवाह हमा। कवि ने बारात एव जीमनबार का अच्छा बगंन किया है। अमरनभ मांस ती कर के शासन काल में हुए थे। इसके पश्चात् जब वासुपज्य स्वामी का शासन काल माया तो तीन तीन सागर की लम्बी अवधि व्यतीत होने के पश्चात् अमरप्रभ का फिर जन्म होता है। लंका के राजा वियत की श्रीचन्द पटरानी थी। एक बार वे दोनों जंगल में गये हा थे तो एक बन्दर ने राणी के फूल की दे मारी । राजा ने दाग से बन्दर का वध कर दिया । वानर मरने के पूर्व मुनि के चरणों में प्रा गिरा । इससे बह मर कर देव हो गया । देव ने मायामयी सेना बना कर विद्युतवेग पर चढ़ाई कर दी। लेकिन दोनों में मित्रता हो गयी। मादितपुर की रानी वेगवती की पुत्री श्रीमाला का स्वयंवर रचा गया । प्रस्ववंग में श्रीमाला से गुप्त विवाह करके उसे विमान में बैठाकर ले गया। __ माली राजा ने लंका पर चढ़ाई करके उसको ले लिया। वह लंका पर राज्य करने लगा। कुछ समय पश्चात् इन्द्रकुमार ने लंका पर चढ़ाई करके और युद्ध के पश्चात् वह लंका का स्वामी बन गया। माली मारा गया सुमाली की पत्नी फैकसी ने तीन स्वप्न देखे । उसके तीन पुत्र उत्पन्न हुए जो रावण, कुभकर्ण एवं विभीषण कहलाये। उधर इन्द्र को रावण के बन्म लेते ही दुःस्वप्न माने लगे। वह
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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